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Saturday, 8 August 2020

लूथर गुलिक और लिंडाल उर्विक (प्रशासनिक संगठन के सिद्धांत) Luther Gulick and Lyndall Urwick

 

Luther Halsey Gulick
लूथर हाल्सी गुलिक

(1892–1993)


लूथर हाल्सी गुलिक एक अमेरिकी राजनीतिज्ञ थे उनका जन्म 1892 में जापान के शहर ओशाका में हुआ था। उन्होंने 1920 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में काम किया तथा सन् 1954-56 तक न्यूयॉर्क के नगर प्रशासक के रूप में सेवा की इसके साथ ही वह न्यूयॉर्क स्थित लोक प्रशासन संस्थान में 1920 से लेकर 1962 तक अध्यक्ष पद पर रहे।

गुलिक न केवल एक प्रोफेसर के रूप में अनेक विश्वविद्यालयों में कार्यरत रहे बल्कि एक प्रशासनिक परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में भी उन्होंने दुनिया के बहुत से देशों को अपनी सेवाएं दी। वह राष्ट्रपति के प्रशासन प्रबंधन समिति के सदस्य भी रहे। उन्होंने कई पुस्तकें और शोध निबंध लिखें।

 इनमें से कुछ प्रमुख निम्न है :- 

  • Modern management for the city of New York
  • Administrative reflections France world war II
  • Papers on the science of administration.


Lyndall Fownes Urwick
लिंडाल फाउनेस उर्विक 

(1891-1983)


लिंडाल फाउनेस उर्विक का जन्म सन् 1891 में ब्रिटेन में हुआ था। उनकी शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लिंडाल उर्विक ब्रितानी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर कार्यरत थे। इस दौरान वह अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन संगठनों से जुड़े हुए थे इन्हीं दिनों उन्होंने एक प्रतिष्ठित औद्योगिक प्रबंधन परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में ख्याति मिली। उनकी अनेक पुस्तकें व लेख प्रकाशित हुई जिनमें उल्लेखनीय है:-

  • Management of tomorrow
  • The making of scientific management
  • The element of administration
  • Papers on the science of administration


गुलिक तथा उर्विक दोनों को न केवल सिविल सेवा बल्कि सैन्य संगठनों और औद्योगिक उपक्रमों के कार्यपद्धती का भी खूब अनुभव था। यही कारण है कि इन दोनों के लेखन में दक्षता और अनुशासन का निरंतर जिक्र आता है। उन्होंने सैन्य संगठन से लाइन और स्टाफ जैसी कुछ अवधारणाएं उधार भी ली।


गुलिक तथा उर्विक  टेलर द्वारा विकसित मानव के मशीन मॉडल से बहुत अधिक प्रभावित थे। हेनरी फयोल द्वारा किए गए औद्योगिक प्रबंधन के अध्ययन से भी इन दोनों के विचार का काफी हद तक प्रभावित थे।


इन दोनों लेखकों के लेखकों में एक ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्होंने प्रशासन की संरचना पर ध्यान दिया जबकि संगठन में लोगों की भूमिका की प्राय उपेक्षा की।

संगठन की संरचना में अभिकल्पन (Design) प्रक्रिया के महत्व को समझाते हुए गुलिक तथा उर्विक ने ऐसे सिद्धांतों की खोज में अपना ध्यान लगाया जिनके द्वारा संरचना का खाका खींचा जा सके। अपनी इस खोज में गुलिक हेनरी फेयोल के उन 14 मूल तत्वों से बेहद प्रभावित थे, जिन्हें उन्होंने प्रशासन के मुख्य गुणों की संज्ञा दी है।


गुलिक ने संगठन के 10 सिद्धांत सुझाए गए हैं यह इस प्रकार हैं:-

  1. कार्य विभाजन अथवा विशेषीकरण
  2. विभागीय संगठनों का आधार
  3. पदसोपान (Hierarchy) के माध्यम से समन्वय
  4. सुविचारित समन्वय
  5. समितियों के अंतर्गत समन्वय
  6. विकेंद्रीकरण
  7. आदेश की एकता
  8. स्टाफ और लाइन
  9. प्रत्यायोजन (Delegation)
  10. नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र

उर्विक ने संगठन के आठ सिद्धांतों की पहचान की है जो इस प्रकार है:-


  1. उद्देश्यों का सिद्धांत - संगठन के उद्देश्यों की अभिव्यक्ति करनी चाहिए।
  2. अनुरूपता का सिद्धांत - सत्ता और उत्तरदायित्व दोनों एक दूसरे के बराबर होने चाहिए।
  3. उत्तरदायित्व का सिद्धांत - अपने कार्य का उत्तरदायित्व
  4. स्केलर सिद्धांत ।
  5. नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र का सिद्धांत - एक वरिष्ठ अधिकारी (अपने नीचे के) पांच या छह लोगों से अधिक के कार्य का पर्यवेक्षण नहीं कर सकता।
  6. विशेषीकरण का सिद्धांत - एक व्यक्ति का कार्य एक ही (विशेष) प्रकार का हो।
  7. समन्वय का सिद्धांत।
  8. परिभाषा का सिद्धांत - प्रत्येक के कर्तव्य का स्पष्ट निर्धारण।


इसके बाद उन्होंने (उर्विक) फेयोल के 14 प्रशासनिक सिद्धांतों मूनी एवं रिले के सिद्धांत प्रक्रिया और प्रभाव टेलर के प्रबंधन सिद्धांत तथा फोलेट के विचारों को एकीकृत करके 29 सिद्धांत तथा उनके उप सिद्धांत विकसित किए जो इस प्रकार हैं:-

1 अन्वेषण, 2 पूर्वानुमान, 3 योजना, 4 संगति, 5 संगठन, 6 समन्वय, 7 व्यवस्था, 8 आदेश, 9 नियंत्रण, 10 समन्वय कारी सिद्धांत, 11 सत्ता, 12 परिमापन प्रक्रिया, 13 कार्य का सौंपा जाना, 14 नेतृत्व, 15 प्रत्यायोजन, 16 प्रक्रियात्मक परिभाषा, 17 निश्चायक,  18 कार्यान्वयन की क्षमता, 19 निर्वाचन क्षमता, 20 सामान्य हित, 21 केंद्रीय करण, 22 कर्मचारी नियुक्ति करना, 23 आत्मा, 24 चयन और नियुक्ति, 25 पुरस्कार एवं प्रतिबंध, 26 पहल, 27 समानता, 28 अनुशासन, 29 स्थिरता।


नेतृत्व की अवधारणा (उर्विक):-

नेतृत्व की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उर्विक ने कहा है कि नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार का ऐसा गुण है जिसके द्वारा अन्य व्यक्ति नेता का निर्देशन स्वीकार करते हैं। उर्विक ने नेतृत्व के चार कार्यो की चर्चा की है:-

  • प्रतिनिधित्व करना 
  • पहल करना 
  • उधम का प्रशासन करना 
  • विश्लेषण करना।

नेतृत्व के चार कार्यों की चर्चा के बाद उर्विक नेतृत्व के छह योग्यताएं बताई हैं:-

  • आत्मविश्वास 
  • व्यक्तित्व 
  • जीव शक्ति 
  • सामान्य बुद्धिमत्ता 
  • संप्रेक्षण क्षमता 
  • निर्णायक क्षमता

लूथर गुलिक - पोस्डकोर्ब (POSDCORB)

गुलिक ने कार्यपालिकीय कार्यों को भी अभीज्ञात किया है और एक नए शब्द पोस्डकोर्ब (POSDCORB) दिया। इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंध के किसी महत्वपूर्ण कार्य को सूचित करता है।

POSDCORB
Luther gulick - POSDCORB
  • P - Planning (योजना बनाना) :-  किसी भी कार्य करने से पहले उस कार्य की रूपरेखा का निर्धारण करना जिससे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति सरलतापूर्वक की जा सके।
  • O - Organising (संगठन बनाना) :- प्रशासनिक संगठन का ढांचा इस प्रकार से तैयार करना कि विभिन्न प्रशासकीय कार्यों का विभाजन उचित रुप में किया जा सके तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित किया जा सके।
  • S - Staffing (कर्मचारियों की उपलब्धता) :- किसी भी संगठन को अपने निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
  • D - Directing (निर्देश देना):-  विभिन्न प्रशासकीय कार्यो का विश्लेषण कर उसके अनुसार कर्मचारियों को निर्देश देना ताकि संगठन अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति से भटके नहीं।
  • Co - Co-ordinating (समन्वय स्थापित करना):- संगठन के विभिन्न विभागों के कार्यो में तालमेल स्थापित करना ताकि कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सके।
  • R - Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):-  संगठन की कार्य प्रगति के विषय में समय समय पर रिपोर्ट तैयार करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • B - Budgeting (बजट बनाना) :- किसी भी संगठन को अपने कार्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता होती हैं।

इस प्रकार प्रशासन के विद्यार्थियों को लूथर गुलिक का आभारी होना चाहिए जिन्होंने 'पोस्डकोर्ब' जैसा संकेताक्षर शब्द रचा जो महत्वपूर्ण कार्यकारी कार्यों को निरूपित करता है।

परंतु इसके बावजूद इस बात की उपेक्षा नहीं की जा सकती की 'पोस्डकोर्ब' जैसा शब्द सूत्र नीति निर्माण, मूल्यांकन और जनसंपर्क जैसी प्रक्रियाओं के बारे में कोई सूचना नहीं देता। संगठन के यह तमाम महत्वपूर्ण पहलू यहां पूरी तरह अनुपस्थित हैं।


विभागीकरण का सिद्धांत /आधार (लूथर गुलिक)

लूथर गुलिक ने ऐसे चार आधारों की तलाश की है जिनकी बदौलत कार्य बांटने यानी उपयुक्त व्यक्ति तथा उपयुक्त समूह को काम सौंपने की समस्या का हल निकाला जा सकता है। यह चार आधार इस प्रकार हैं:-

  •  उद्देश्य (Purpose)
  • प्रक्रिया (Process)
  •  व्यक्ति (Person)
  •  स्थान (Place) 

गूलिक इन्हें "P4" का नाम भी देते है।


आलोचना:-

  • एक दूसरे से मेल नहीं खाते 
  • पूर्णतः स्पष्ट नहीं है 
  • यह सिद्धांत विवेचनात्मक होने के बजाय आदेशात्मक हैं।

इसकी आलोचना भले ही की गई हो परंतु आज भी इन चारों आधारों पर विभिन्न संगठनों में विभागों का बंटवारा होता है। जैसे सरकार में - रक्षा विभाग, वित्त विभाग व कानून विभाग आदि।



लोक प्रशासन में मानवीय कारक और समय


गुलिक ने अपने हाल के लेखों में महसूस किया है कि 50 साल पहले उन्होंने लोक प्रशासन के संबंध में जो 'पेपर्स ऑन साइंस ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन' संपादित किए थे तब के मुकाबले आज के क्षेत्र में बहुत तब्दीलियां आ गई हैं यह तब्दीलियां प्रशासन की प्रकृति में हुए प्रभावशाली बदलावों के चलते आई हैं।


गुलिक ज़ोर देकर कहते हैं कि राज्य का मुख्य कार्य लोगों का कल्याण करना होना चाहिए उनके जीवन को कायम रखना और बेहतर बनाना होना चाहिए ताकि सतत बदलते हुए वातावरण की चुनौतियों का सामना किया जा सके ने की युद्ध का। मगर वह अफसोस के साथ कहते हैं कि आधुनिक राज्य की संरचना मुख्यतः युद्ध को ध्यान में रखकर की गई है। मानव मूल्य और कल्याण कहीं संदर्भ में नहीं है।

गुलिक समय के विषय में कहते हैं कि समय हर घटना के लिए महत्वपूर्ण कारक होता है इसके बिना न तो परिवर्तन हो सकता है और ना ही विकास प्रबंधन के उत्तरदायित्व को तय किए जाने और कार्यक्रम स्थितियों के लिए भी समय प्रभावी कारक होता है। मगर लोक प्रशासन में समय जैसे कारक की उपेक्षा की गई है।


उपसंहार


गुलिक तथा उर्विक ने संगठन सिद्धांतों के विषय में महत्वपूर्ण योगदान दिया है परंतु इनके सिद्धांत आलोचनाओं से परे नहीं है उनके संगठन सिद्धांतों की कड़ी आलोचना की गई है सिद्धांतों के बारे में काफी कुछ लिखने के बाद भी वह पूर्ण रूप से स्पष्ट कर पाने में असफल थे कि इनमें उनका आशय क्या है।


एलडी व्हाइट कहते हैं लाइन, स्टाफ, सहायक एजेंसियां, पदसोपान, सत्ता और केंद्रीयकरण यह तमाम शब्द प्रशासनिक स्थितियों का वर्गीकरण करने और उनका वर्णन करने में तो उपयोगी हो सकते हैं लेकिन जहां तक सवाल प्रशासन का है वैज्ञानिक सूत्रीकरण करने का है तो ये ऐसा यह नहीं करते।


हर्बर्ट साइमन कहते हैं कि प्रशासन के इन सिद्धांतों में सबसे बड़ी खामी यह है कि सबके साथ इनका विलोमर्थी सिद्धांत भी जुड़ा है अर्थात यह सिद्धांत एक दूसरे के विरोधाभासी प्रतीत होते हैंउदाहरण के लिए विशेष उपकरण के सिद्धांत और आदेश की एकता सिद्धांत के बीच असंगति को देखा जा सकता है


गुलिक तथा उर्विक के प्रशासनिक अध्ययन की एक खामी यह भी है कि उन्होंने सिर्फ औपचारिक संगठनों का अध्ययन किया है और अनौपचारिक संगठनों की प्रक्रियाओं की उन्होंने पूर्णता अनदेखी की है जबकि यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि संगठन हमेशा औपचारिक मॉडल के अनुरूप नहीं होते।

इसके अलावा इनके सिद्धांतों में मानवीय पक्ष की उपेक्षा साफ देखी जा सकती है।


इन विभिन्न आलोचनाओं के बावजूद लूथर व गुलिक के प्रशासनिक सिद्धांतों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमें पोस्डकोर्ब जैसी बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल है।


Saturday, 23 December 2017

लोक प्रशासन की अवधारणा Public Administration

लोक प्रशासन (Public Administration)


परिचय


लोक प्रशासन को एक अध्ययन विषय के रूप में  देखा जाए तो  इसका इतिहास लगभग 130 वर्ष पुराना है परंतु एक गतिविधि के तौर पर लोक प्रशासन मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही मौजूद रहा है। यह बात अलग है कि प्राचीन काल के लोक प्रशासन की तुलना में आधुनिक लोक प्रशासन की प्रकृति में बदलाव आ गया है। प्राचीन लोक प्रशासन का चरित्र अधिनायकवादी, कुलीन व पितृसत्तात्मक आधारित था तथा इसका मुख्य उद्देश्य  कानून व्यवस्था को लागू करना व राजस्व वसूली करना था। लोक कल्याण के कार्य कभी-कभार ही होते थे। प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति  राजनय वर्ग के द्वारा की जाती थी। अतः जब से मानव ने संगठित होकर रहना प्रारंभ किया है तब से ही लोक प्रशासन का अस्तित्व है तथा मानव सभ्यता के साथ-साथ इसके स्वरुप में भी बदलाव होता रहा है।

वर्तमान में लोक प्रशासन का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है तथा यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रहा है।  अब लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जनसेवा तथा मानव जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी करना है।


लोक प्रशासन, प्रशासन का ही एक भाग है अतः लोक प्रशासन को सही रूप में समझने से पहले प्रशासन को समझना आवश्यक है।

प्रशासन Administration


प्रशासन यानी Administration लेटिन भाषा के Ad तथा Ministarare शब्द के योग से बना है जिसका अर्थ है "काम करवाना"। 16वीं शताब्दी के बाद प्रशासन का अर्थ प्रबंधन से लगाया जाने लगा। परंतु आधुनिक विचारको की माने तो प्रशासन एक सुनिश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए मनुष्य द्वारा आपसी सहयोग से की जाने वाली एक सामूहिक क्रिया है।
प्रशासन का अर्थ शासित या अनुशासित करना है। इसका आशय यह है कि इस क्रिया में अनेक व्यक्तियों को विशिष्ट अनुशासन में रखते हुए उनसे एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कराया जाता है। सरल शब्दों में प्रशासन एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहयोगी ढंग से किया जाने वाला कार्य है। इस तरह प्रशासन के लिए सहयोगी संगठन और सामाजिक हित का उद्देश्य होना आवश्यक है।

प्रशासन की परिभाषाएं :-

प्रशासन का संबंध निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्य करवाने से है
-लूथर गुलिक

व्यापक दृष्टि से प्रशासन की परिभाषा यह कही जा सकती है कि यह समूहों की वह क्रियाएं हैं जो सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपसी सहयोग द्वारा की जाती हैं
-साइमन स्मिथबर्ग एवं थॉम्पसन

निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला सामूहिक कार्य है
-अरस्तु

निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय तथा भौतिक संसाधनों के संगठन और संचालन को प्रशासन कहते हैं
-पिफनर और प्रेस्थस

किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बहुत से मनुष्य का निर्देशन समन्वय तथा नियंत्रण ही प्रशासन की कला है
-एल. डी. व्हाइट

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रशासन निम्नलिखित लक्षण से युक्त है :-
  • प्रशासन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाने वाला कार्य है।
  •  प्रशासन करने वाले के पास अधिकार होता है कि वह दूसरों को कार्य में सहयोग के लिए कहे।
  • प्रशासन में एक से अधिक व्यक्ति सहयोग भाव से कार्य करते हैं।
  • प्रशासन का उद्देश्य इस क्रिया में भाग लेने वाले व्यक्तियों के उद्देश्य से भी होता है। ( उदाहरण के लिए यदि कोई सरकार जन कल्याण की कोई नीति बनाता है तथा उसे लागू करता है तो उसका उद्देश्य जनता की करना होता है परंतु इस में काम करने वाले कर्मचारियों का उद्देश्य अपनी आजीविका कमाना होता है )
अतः विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न व्यक्तियों के सहयोग से किया जाने वाले कार्य के प्रबंधन को प्रशासन कहते हैं है।

लोक प्रशासन Public Administration 

लोक प्रशासन का अर्थ:-

लोक प्रशासन "प्रशासन" का ही एक भाग है अर्थात प्रशासन के विस्तृत क्षेत्र का एक भाग है। लोक प्रशासन "लोक" Public तथा "प्रशासन" Administration से मिलकर बना है।
लोक शब्द सार्वजनिकता व आम जनता की भागीदारी का प्रतीक है तथा प्रशासन से अभिप्राय जनता की सेवा व कार्य प्रबंधन से है। तथा लोक प्रशासन का संबंध सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन करने से होता है।
अतः लोक कल्याण की सार्वजनिक गतिविधियों का प्रबंधन अथवा सरकारी कार्यों व नीतियों का प्रबंधन करना लोक प्रशासन कहलाता है।

लूथर गुलिक के अनुसार - लोक प्रशासन प्रशासन का वह अंग है जिसका संबंध सरकार से है और इस प्रकार मुख्य रूप से लोक प्रशासशन का संबंध कार्यपालिका से है।

पर्सीमेक्वीन के अनुसार - लोक प्रशासन सरकार के कार्यों से संबंधित होता है, चाहे वे केन्द्र द्वारा सम्पादित हों अथवा स्थानीय निकाय द्वारा।

व्हाइट के अनुसार - लोक प्रशासन में वह गतिविधियां आती हैं जिनका उद्देश्य सार्वजनिक नीति को पूरा करना या क्रियांवित करना होता है।

वुडरो विल्सन के अनुसार- लोक प्रशासन नियम या कानून को विस्तृत एवं क्रमबद्ध रूप में क्रियांवित करने का काम है कानून को क्रियांवित करने के लिए प्रतिक्रिया प्रशासकीय क्रिया है।

लोक प्रशासन का स्वरुप (Nature of Public Administration) :-


प्रबंधकीय दृष्टिकोण (The Managerial View):-

प्रबंधकीय दृष्टिकोण के अनुसार केवल उच्च स्तरीय प्रशासन के कार्य प्रशासन में शामिल माने जा सकते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करना प्रशासन नहीं बल्कि कार्य करवाना प्रशासन है इस विचार के समर्थक साइमन, थामसन, सिम्थबर्ग तथा गुलिक आदि है।

एकीकृत दृष्टिकोण (The Integral View) :-

एकीकृत दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करना तथा कार्य करवाना दोनों ही प्रशासन में आते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला क्रियाओं का समग्र योग लोक प्रशासन में आता है इस दृष्टिकोण के अनुसार संगठन में चपरासी से लेकर प्रबंधक तक सभी प्रशासन का भाग है इस सिद्धांत के समर्थक एल डी वाइट, पिफनर और एफ. एम. मार्क्स आदि हैं।


लोक प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Public Administration) :-


लोक प्रशासन के क्षेत्र की व्यापकता को देखते हुए इसके  क्षेत्र के विषय में कई दृष्टिकोण पाई जाती हैं:-

# पोस्डकोर्ब ( POSDCORB ) दृष्टिकोण

पोस्डकोर्ब शब्द का निर्माण लूथर गुलिक द्वारा किया गया उन्होंने कार्यपालिका के प्रशासन कार्य को ज्ञात किया और एक नए शब्द का निर्माण किया इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंधन के किसी महत्वपूर्ण कार्य का सूचक है।


  • P - Planning (योजना बनाना) :-  किसी भी कार्य करने से पहले उस कार्य की रूपरेखा का निर्धारण करना जिससे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति सरलतापूर्वक की जा सके
  • O - Organising (संगठन बनाना) :- प्रशासनिक संगठन का ढांचा इस प्रकार से तैयार करना कि विभिन्न प्रशासकीय कार्यों का विभाजन उचित रुप में किया जा सके तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित किया जा सके
  • S - Staffing (कर्मचारियों की उपलब्धता) :- किसी भी संगठन को अपने निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
  • D - Directing (निर्देश देना):-  विभिन्न प्रशासकीय कार्यो का विश्लेषण कर उसके अनुसार कर्मचारियों को निर्देश देना ताकि संगठन अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति से भटके नहीं।
  • Co - Co-ordinating (समन्वय स्थापित करना):- संगठन के विभिन्न विभागों के कार्यो में तालमेल स्थापित करना ताकि कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सके।
  • R - Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):-  संगठन की कार्य प्रगति के विषय में समय समय पर रिपोर्ट तैयार करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • B - Budgeting (बजट बनाना) किसी भी संगठन को अपने कार्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता होती हैं। 

 अतः वित्तीय संबंधी लेन देन के विषय में बजट तैयार करना आवश्यक होता है।

# संकुचित दृष्टिकोण :- 

इस दृष्टिकोण के समर्थक विद्वानों के अनुसार लोक प्रशासन का संबंध केवल शासन की कार्यपालिका से है। इसमें संगठन के सभी कार्यों को सम्मिलित नहीं किया जाता हैं, केवल कार्यपालिका प्रबंधकीय कार्यों को शामिल किया जाता है। ....

# आधुनिक दृष्टिकोण:-

आधुनिक दृष्टिकोण के विचारको के अनुसार सभी प्रकार के सार्वजनिक प्रशासनिक कार्य चाहे वह स्थानीय स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर हो और चाहे वह सलाहकार हो या कार्यवाहक हो, संगठन तथा कार्य प्रणालीयाँ आदि सभी लोक प्रशासन के अंतर्गत आते है। ....

# लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण:-

इस दृष्टिकोण के अनुसार राज्य और प्रशासन एक सामान है। इस दृष्टिकोण के अनुसार वर्तमान समय में राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी है उसी प्रकार लोक प्रशासन भी लोक कल्याणकारी है अतः दोनों का उद्देश्य जनकल्याण है। इस प्रकार इस विचारधारा के अनुसार लोक प्रशासन का क्षेत्र जनता के हित में किए जाने वाले समस्त कार्यों तक फैला हुआ है।

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन (Public and Private Administration) :-


लोक प्रशासन और निजी प्रशासन के विषय में दो दृष्टिकोण प्रचलित हैं एक दृष्टिकोण दोनों में अंतर नहीं मानता है जबकि दूसरा दृष्टिकोण दोनों में अंतर करता है।


Similarities between Public and Private Administration

 प्रथम दृष्टिकोण समानता का दृष्टिकोण है इस के समर्थक फ्रेंच विचारक हेनरी फेयोल, मेरी पार्कर और और उर्विक है।  ये विचारक दोनों को एक-सा मानते हैं इस दृष्टिकोण के समर्थक मानते हैं कि:-

* निजी प्रशासन और लोक प्रशासन दोनों में ही जनसंपर्क की आवश्यकता पड़ती है ।

* प्रशासन चाहे शासकीय तौर पर किया जाए चाहे निजी तौर पर संगठन की आवश्यकता दोनों में पढ़ती है।

*बड़ा उद्यम चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी की समुचित प्रशासन के लिए नियोजन संगठन आदेश समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

*दोनों तरह के प्रशासन में अधिकारियों को समान रुप से उत्तरदायित्व दिए जाते हैं अधिकारियों में समानता और कौशल पर बल दिया जाता है।

* दोनों तरह के प्रशासन में प्रबंधन व संगठन संबंधी अनेक तकनीकें समान होती है। जैसे तथ्य उपलब्ध करवाना रिपोर्ट जारी करना संबंधी अनेक क्रियाएं दोनों प्रशासन में पाई जाती हैं


Differences between Public and Private Administration :-


दूसरा दृष्टिकोण असामानता का दृष्टिकोण है जिसके समर्थकों में साइमन तथा अपलबी जैसे विद्वान शामिल है इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में अंतर है।
 हर्बर्ट साइमन के अनुसार सामान्य व्यक्तियों की दृष्टि में निजी प्रशासन गैर-राजनीतिक और चुस्ती से काम करने वाले माने जाते हैं जो सार्वजनिक प्रशासन से भिन्न होते हैं।


लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य जन सेवा तथा लोक कल्याण होता है परंतु निजी प्रशासन का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।

लोक प्रशासन जनता के प्रति जवाबदेह होता हैं परंतु निजी प्रशासन जनता के प्रति इतना जिम्मेदार या जवाबदेह नहीं होता है।

लोक प्रशासन द्वारा ऐसे कार्य किए जाते हैं जो निजी तौर पर पूरे नहीं किए जा सकते इसीलिए बड़े क्षेत्रों जैसे रेलवे व् डाक आदि लोक प्रशासन के अंतर्गत रखे जाते हैं।

लोक प्रशासन का क्षेत्र काफी व्यापक होता है जबकि निजी प्रशासन संकुचित क्षेत्र तक सीमित रहता है।

लोक प्रशासन का संगठन नौकरशाही आधारित होता है परंतु निजी प्रशासन का संगठन व्यापारिक आधार पर होता है

लोक प्रशासन के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारी स्थाई होते हैं जबकि निजी प्रशासन में कार्यरत कर्मचारी अस्थाई होते हैं

लोक प्रशासन में निजी लोक प्रशासन की तुलना में पक्षपात पूर्ण व्यवहार किए जाने की संभावना बहुत कम होती है।


लोक प्रशासन का महत्व (Significance of Public Administration) :-


लोक प्रशासन का महत्व वर्तमान के आधुनिक काल में लोक प्रशासन का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है राज्य का का स्वरूप अधिनायकवादी तथा पितृसत्तात्मक आधारित से बदलकर आज के आधुनिक युग में कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित हो चुका है अतः राज्य के दायित्व में बढ़ोतरी के साथ-साथ लोक प्रशासन का महत्व भी निरंतर बढ़ता जा रहा है इसलिए वर्तमान युग को प्रशासनिक राज्य का युग भी कहा जाता है

लोक कल्याणकारी
राज्य वर्तमान समय में राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी हो गया है। लोक कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य जनकल्याण के कार्य करना होता है। राज्य लोक हित के लक्ष्यों की पूर्ति बिना प्रशासन के सहयोग के नहीं कर सकता आर्थिक जीवन के लक्ष्य प्रशासन की कार्यकुशलता के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं। लोक कल्याणकारी राज्य की सफलता पर शासकीय कुशलता पर आधारित होती है।

लोकतंत्रात्मक शासन
वैसे प्रशासन का महत्व तो प्रत्येक प्रणाली में है परंतु लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में इस का विशेष महत्व है। लोकतंत्र में प्रशासन सेवक की भूमिका निभाता है। प्रशासन का उद्देश्य सार्वजनिक हित होता है और प्रशासन की भूमिका सृजनात्मक होती है।

नीतियों को व्यवहारिक जामा पहनाने के लिए
 नीतियों को व्यवहारिक बनाने की लिए लोक प्रशासन का विशेष महत्व है। लोक प्रशासन सामाजिक आवश्यकता और आर्थिक बचत की दृष्टि से ऐसे निर्णय लेता है जिससे नीति को व्यवहारिकता प्राप्त होती है।

निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए
 निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए लोकप्रशासन बेहद महत्वपूर्ण है विभिन्न आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लोक प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है

सामाजिक स्थिरता व सामाजिक परिवर्तन के लिए
सामाजिक स्थिरता के निर्माण में लोकप्रशासन का बहुत महत्व हैं। वर्तमान समय में प्राथमिक आवश्यकताओं की व्यवस्था करना लोक प्रशासन की कार्यकुशलता पर निर्भर है।सामाजिक जीवन में परिस्थितियों के परिवर्तन आदि के कारण बदलाव का चक्र चलता रहता है।जिससे राजनीतिक व्यवस्था में उथल-पुथल होती रहती है और सरकारी बदलती रहती है परंतु ऐसी स्थिति में प्रशासन का ढांचा समाज को स्थिरता प्रदान करती है।

युद्ध काल में
युद्ध के समय लोक प्रशासन की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है देश की रक्षा के लिए संपूर्ण जन शक्ति और उसके समस्त साधनों का संगठन व नियमन आवश्यक होता है लोक प्रशासन इस दायित्व का निर्वाह करत में लोक प्रशासन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहती है

इसके अलावा अन्य कई क्षेत्रों में लोक प्रशासन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

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सारांश :-

आधुनिक सभ्यता के विकास में लोक प्रशासन का अहम योगदान राहा है
लोक प्रशासन, राज्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण उपकरण है फिर चाहे राजतंत्र शासन व्यवस्था हो या लोकतंत्र हो  लोक प्रशासन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। 21वीं सदी में राज्य के स्वरूप में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है
 आज कल्याणकारी राज्य के दौर में राज्य का मुख्य उद्देश्य जनता की आवश्यकता की पूर्ति करना है जिसमे लोक प्रशासन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।
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