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Saturday, 8 August 2020

लूथर गुलिक और लिंडाल उर्विक (प्रशासनिक संगठन के सिद्धांत) Luther Gulick and Lyndall Urwick

 

Luther Halsey Gulick
लूथर हाल्सी गुलिक

(1892–1993)


लूथर हाल्सी गुलिक एक अमेरिकी राजनीतिज्ञ थे उनका जन्म 1892 में जापान के शहर ओशाका में हुआ था। उन्होंने 1920 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में काम किया तथा सन् 1954-56 तक न्यूयॉर्क के नगर प्रशासक के रूप में सेवा की इसके साथ ही वह न्यूयॉर्क स्थित लोक प्रशासन संस्थान में 1920 से लेकर 1962 तक अध्यक्ष पद पर रहे।

गुलिक न केवल एक प्रोफेसर के रूप में अनेक विश्वविद्यालयों में कार्यरत रहे बल्कि एक प्रशासनिक परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में भी उन्होंने दुनिया के बहुत से देशों को अपनी सेवाएं दी। वह राष्ट्रपति के प्रशासन प्रबंधन समिति के सदस्य भी रहे। उन्होंने कई पुस्तकें और शोध निबंध लिखें।

 इनमें से कुछ प्रमुख निम्न है :- 

  • Modern management for the city of New York
  • Administrative reflections France world war II
  • Papers on the science of administration.


Lyndall Fownes Urwick
लिंडाल फाउनेस उर्विक 

(1891-1983)


लिंडाल फाउनेस उर्विक का जन्म सन् 1891 में ब्रिटेन में हुआ था। उनकी शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लिंडाल उर्विक ब्रितानी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर कार्यरत थे। इस दौरान वह अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन संगठनों से जुड़े हुए थे इन्हीं दिनों उन्होंने एक प्रतिष्ठित औद्योगिक प्रबंधन परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में ख्याति मिली। उनकी अनेक पुस्तकें व लेख प्रकाशित हुई जिनमें उल्लेखनीय है:-

  • Management of tomorrow
  • The making of scientific management
  • The element of administration
  • Papers on the science of administration


गुलिक तथा उर्विक दोनों को न केवल सिविल सेवा बल्कि सैन्य संगठनों और औद्योगिक उपक्रमों के कार्यपद्धती का भी खूब अनुभव था। यही कारण है कि इन दोनों के लेखन में दक्षता और अनुशासन का निरंतर जिक्र आता है। उन्होंने सैन्य संगठन से लाइन और स्टाफ जैसी कुछ अवधारणाएं उधार भी ली।


गुलिक तथा उर्विक  टेलर द्वारा विकसित मानव के मशीन मॉडल से बहुत अधिक प्रभावित थे। हेनरी फयोल द्वारा किए गए औद्योगिक प्रबंधन के अध्ययन से भी इन दोनों के विचार का काफी हद तक प्रभावित थे।


इन दोनों लेखकों के लेखकों में एक ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्होंने प्रशासन की संरचना पर ध्यान दिया जबकि संगठन में लोगों की भूमिका की प्राय उपेक्षा की।

संगठन की संरचना में अभिकल्पन (Design) प्रक्रिया के महत्व को समझाते हुए गुलिक तथा उर्विक ने ऐसे सिद्धांतों की खोज में अपना ध्यान लगाया जिनके द्वारा संरचना का खाका खींचा जा सके। अपनी इस खोज में गुलिक हेनरी फेयोल के उन 14 मूल तत्वों से बेहद प्रभावित थे, जिन्हें उन्होंने प्रशासन के मुख्य गुणों की संज्ञा दी है।


गुलिक ने संगठन के 10 सिद्धांत सुझाए गए हैं यह इस प्रकार हैं:-

  1. कार्य विभाजन अथवा विशेषीकरण
  2. विभागीय संगठनों का आधार
  3. पदसोपान (Hierarchy) के माध्यम से समन्वय
  4. सुविचारित समन्वय
  5. समितियों के अंतर्गत समन्वय
  6. विकेंद्रीकरण
  7. आदेश की एकता
  8. स्टाफ और लाइन
  9. प्रत्यायोजन (Delegation)
  10. नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र

उर्विक ने संगठन के आठ सिद्धांतों की पहचान की है जो इस प्रकार है:-


  1. उद्देश्यों का सिद्धांत - संगठन के उद्देश्यों की अभिव्यक्ति करनी चाहिए।
  2. अनुरूपता का सिद्धांत - सत्ता और उत्तरदायित्व दोनों एक दूसरे के बराबर होने चाहिए।
  3. उत्तरदायित्व का सिद्धांत - अपने कार्य का उत्तरदायित्व
  4. स्केलर सिद्धांत ।
  5. नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र का सिद्धांत - एक वरिष्ठ अधिकारी (अपने नीचे के) पांच या छह लोगों से अधिक के कार्य का पर्यवेक्षण नहीं कर सकता।
  6. विशेषीकरण का सिद्धांत - एक व्यक्ति का कार्य एक ही (विशेष) प्रकार का हो।
  7. समन्वय का सिद्धांत।
  8. परिभाषा का सिद्धांत - प्रत्येक के कर्तव्य का स्पष्ट निर्धारण।


इसके बाद उन्होंने (उर्विक) फेयोल के 14 प्रशासनिक सिद्धांतों मूनी एवं रिले के सिद्धांत प्रक्रिया और प्रभाव टेलर के प्रबंधन सिद्धांत तथा फोलेट के विचारों को एकीकृत करके 29 सिद्धांत तथा उनके उप सिद्धांत विकसित किए जो इस प्रकार हैं:-

1 अन्वेषण, 2 पूर्वानुमान, 3 योजना, 4 संगति, 5 संगठन, 6 समन्वय, 7 व्यवस्था, 8 आदेश, 9 नियंत्रण, 10 समन्वय कारी सिद्धांत, 11 सत्ता, 12 परिमापन प्रक्रिया, 13 कार्य का सौंपा जाना, 14 नेतृत्व, 15 प्रत्यायोजन, 16 प्रक्रियात्मक परिभाषा, 17 निश्चायक,  18 कार्यान्वयन की क्षमता, 19 निर्वाचन क्षमता, 20 सामान्य हित, 21 केंद्रीय करण, 22 कर्मचारी नियुक्ति करना, 23 आत्मा, 24 चयन और नियुक्ति, 25 पुरस्कार एवं प्रतिबंध, 26 पहल, 27 समानता, 28 अनुशासन, 29 स्थिरता।


नेतृत्व की अवधारणा (उर्विक):-

नेतृत्व की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उर्विक ने कहा है कि नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार का ऐसा गुण है जिसके द्वारा अन्य व्यक्ति नेता का निर्देशन स्वीकार करते हैं। उर्विक ने नेतृत्व के चार कार्यो की चर्चा की है:-

  • प्रतिनिधित्व करना 
  • पहल करना 
  • उधम का प्रशासन करना 
  • विश्लेषण करना।

नेतृत्व के चार कार्यों की चर्चा के बाद उर्विक नेतृत्व के छह योग्यताएं बताई हैं:-

  • आत्मविश्वास 
  • व्यक्तित्व 
  • जीव शक्ति 
  • सामान्य बुद्धिमत्ता 
  • संप्रेक्षण क्षमता 
  • निर्णायक क्षमता

लूथर गुलिक - पोस्डकोर्ब (POSDCORB)

गुलिक ने कार्यपालिकीय कार्यों को भी अभीज्ञात किया है और एक नए शब्द पोस्डकोर्ब (POSDCORB) दिया। इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंध के किसी महत्वपूर्ण कार्य को सूचित करता है।

POSDCORB
Luther gulick - POSDCORB
  • P - Planning (योजना बनाना) :-  किसी भी कार्य करने से पहले उस कार्य की रूपरेखा का निर्धारण करना जिससे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति सरलतापूर्वक की जा सके।
  • O - Organising (संगठन बनाना) :- प्रशासनिक संगठन का ढांचा इस प्रकार से तैयार करना कि विभिन्न प्रशासकीय कार्यों का विभाजन उचित रुप में किया जा सके तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित किया जा सके।
  • S - Staffing (कर्मचारियों की उपलब्धता) :- किसी भी संगठन को अपने निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
  • D - Directing (निर्देश देना):-  विभिन्न प्रशासकीय कार्यो का विश्लेषण कर उसके अनुसार कर्मचारियों को निर्देश देना ताकि संगठन अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति से भटके नहीं।
  • Co - Co-ordinating (समन्वय स्थापित करना):- संगठन के विभिन्न विभागों के कार्यो में तालमेल स्थापित करना ताकि कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सके।
  • R - Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):-  संगठन की कार्य प्रगति के विषय में समय समय पर रिपोर्ट तैयार करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • B - Budgeting (बजट बनाना) :- किसी भी संगठन को अपने कार्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता होती हैं।

इस प्रकार प्रशासन के विद्यार्थियों को लूथर गुलिक का आभारी होना चाहिए जिन्होंने 'पोस्डकोर्ब' जैसा संकेताक्षर शब्द रचा जो महत्वपूर्ण कार्यकारी कार्यों को निरूपित करता है।

परंतु इसके बावजूद इस बात की उपेक्षा नहीं की जा सकती की 'पोस्डकोर्ब' जैसा शब्द सूत्र नीति निर्माण, मूल्यांकन और जनसंपर्क जैसी प्रक्रियाओं के बारे में कोई सूचना नहीं देता। संगठन के यह तमाम महत्वपूर्ण पहलू यहां पूरी तरह अनुपस्थित हैं।


विभागीकरण का सिद्धांत /आधार (लूथर गुलिक)

लूथर गुलिक ने ऐसे चार आधारों की तलाश की है जिनकी बदौलत कार्य बांटने यानी उपयुक्त व्यक्ति तथा उपयुक्त समूह को काम सौंपने की समस्या का हल निकाला जा सकता है। यह चार आधार इस प्रकार हैं:-

  •  उद्देश्य (Purpose)
  • प्रक्रिया (Process)
  •  व्यक्ति (Person)
  •  स्थान (Place) 

गूलिक इन्हें "P4" का नाम भी देते है।


आलोचना:-

  • एक दूसरे से मेल नहीं खाते 
  • पूर्णतः स्पष्ट नहीं है 
  • यह सिद्धांत विवेचनात्मक होने के बजाय आदेशात्मक हैं।

इसकी आलोचना भले ही की गई हो परंतु आज भी इन चारों आधारों पर विभिन्न संगठनों में विभागों का बंटवारा होता है। जैसे सरकार में - रक्षा विभाग, वित्त विभाग व कानून विभाग आदि।



लोक प्रशासन में मानवीय कारक और समय


गुलिक ने अपने हाल के लेखों में महसूस किया है कि 50 साल पहले उन्होंने लोक प्रशासन के संबंध में जो 'पेपर्स ऑन साइंस ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन' संपादित किए थे तब के मुकाबले आज के क्षेत्र में बहुत तब्दीलियां आ गई हैं यह तब्दीलियां प्रशासन की प्रकृति में हुए प्रभावशाली बदलावों के चलते आई हैं।


गुलिक ज़ोर देकर कहते हैं कि राज्य का मुख्य कार्य लोगों का कल्याण करना होना चाहिए उनके जीवन को कायम रखना और बेहतर बनाना होना चाहिए ताकि सतत बदलते हुए वातावरण की चुनौतियों का सामना किया जा सके ने की युद्ध का। मगर वह अफसोस के साथ कहते हैं कि आधुनिक राज्य की संरचना मुख्यतः युद्ध को ध्यान में रखकर की गई है। मानव मूल्य और कल्याण कहीं संदर्भ में नहीं है।

गुलिक समय के विषय में कहते हैं कि समय हर घटना के लिए महत्वपूर्ण कारक होता है इसके बिना न तो परिवर्तन हो सकता है और ना ही विकास प्रबंधन के उत्तरदायित्व को तय किए जाने और कार्यक्रम स्थितियों के लिए भी समय प्रभावी कारक होता है। मगर लोक प्रशासन में समय जैसे कारक की उपेक्षा की गई है।


उपसंहार


गुलिक तथा उर्विक ने संगठन सिद्धांतों के विषय में महत्वपूर्ण योगदान दिया है परंतु इनके सिद्धांत आलोचनाओं से परे नहीं है उनके संगठन सिद्धांतों की कड़ी आलोचना की गई है सिद्धांतों के बारे में काफी कुछ लिखने के बाद भी वह पूर्ण रूप से स्पष्ट कर पाने में असफल थे कि इनमें उनका आशय क्या है।


एलडी व्हाइट कहते हैं लाइन, स्टाफ, सहायक एजेंसियां, पदसोपान, सत्ता और केंद्रीयकरण यह तमाम शब्द प्रशासनिक स्थितियों का वर्गीकरण करने और उनका वर्णन करने में तो उपयोगी हो सकते हैं लेकिन जहां तक सवाल प्रशासन का है वैज्ञानिक सूत्रीकरण करने का है तो ये ऐसा यह नहीं करते।


हर्बर्ट साइमन कहते हैं कि प्रशासन के इन सिद्धांतों में सबसे बड़ी खामी यह है कि सबके साथ इनका विलोमर्थी सिद्धांत भी जुड़ा है अर्थात यह सिद्धांत एक दूसरे के विरोधाभासी प्रतीत होते हैंउदाहरण के लिए विशेष उपकरण के सिद्धांत और आदेश की एकता सिद्धांत के बीच असंगति को देखा जा सकता है


गुलिक तथा उर्विक के प्रशासनिक अध्ययन की एक खामी यह भी है कि उन्होंने सिर्फ औपचारिक संगठनों का अध्ययन किया है और अनौपचारिक संगठनों की प्रक्रियाओं की उन्होंने पूर्णता अनदेखी की है जबकि यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि संगठन हमेशा औपचारिक मॉडल के अनुरूप नहीं होते।

इसके अलावा इनके सिद्धांतों में मानवीय पक्ष की उपेक्षा साफ देखी जा सकती है।


इन विभिन्न आलोचनाओं के बावजूद लूथर व गुलिक के प्रशासनिक सिद्धांतों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमें पोस्डकोर्ब जैसी बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल है।


Monday, 1 May 2017

लोक प्रशासन का विकास

एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ 18वीं शताब्दी के अंत में प्रकाशित विषय विश्वकोश "फैडरलिस्ट" के 72 वे परिछेद में अमेरिका के प्रथम वित्त मंत्री अलेक्जेंडर हैमिल्टन ने  लोक प्रशासन का अर्थ और क्षेत्र की स्पष्ट व्याख्या की और इसके बाद फ्रेंच लेखक चार्ल्स जीन बैनीन ने इस विषय पर Theory of public Administration  नामक प्रथम पुस्तक लिखी।
परंतु इस शास्त्र के जनक होने का श्रेय प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक वुडरो विल्सन को प्राप्त है जिन्होंने 1887 में प्रकाशित अपने लेख The Study Of Administration में इस शास्त्र के वैज्ञानिक आधार को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। लोक प्रशासन के इतिहास या विकास को निम्न चरणों में बांटा जा सकता है


1. पहला चरण (1887-1926)
एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म 1887 से माना जाता है। अमेरिका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के तत्कालीन प्राध्यापक वुडरो विल्सन को इस शास्त्र का जनक माना जाता है। उन्होंने 1887 में प्रकाशित अपने लेख "The Study of Administration" में प्रशासन के वैज्ञानिक आधार को विकसित करने पर बल दिया तथा राजनीति और प्रशासन को अलग-अलग बताते हुए कहा "एक संविधान का निर्माण सरल है परंतु इसे चलाना या लागू करना कठिन है" उन्होंने इस चलाने के क्षेत्र के अध्ययन पर बल दिया जो प्रशासन है। उन्होंने राजनीति और प्रशासन में भेद कर इसका अध्ययन किया।
इस चरण के अन्य विचारको में फ्रैंक गुडनाउ हैं जिन्होंने 1900 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "Public Administration" में तर्क प्रस्तुत किया की राजनीति और प्रशासन अलग-अलग हैं क्योंकि राजनीति राज्य की नीतियों का निर्माण है तथा प्रशासन उन नीतियों का क्रियान्वन है।
सन 1926 में एल डी वाइट की पुस्तक "Introduction to the study of Public Administration" प्रकाशित हुई वह लोक प्रशासन की पहली पाठ्य पुस्तक थी जिसने राजनीति प्रप्रशास के अलगाव में विश्वास व्यक्त किया अर्थात राजनीति व प्रशासन का अलग-अलग अध्ययन किया।


2. दूसरा चरण (1927-1937)
लोक प्रशासन के इतिहास में द्वितीय चरण का प्रारंभ हम डब्लू एफ़ विलोबी की पुस्तक "Principles of Public Administration"  से मान सकते हैं। विलोबी के अनुसार लोक प्रशासन में अनेक सिद्धांत ऐसे हैं जिनको क्रियांवित करने में लोक प्रशासन को सुधारा जा सकता है।इस चरण को लोक प्रशासन का सिद्धांतों का काल कहा जाता है।
विलोबी की पुस्तक के बाद अनेक विद्वानों ने लोक प्रशासन पर पुस्तकें लिखनी शुरू की जिनमे- मेरी पार्कर, फोलेट, हेनरी फेयोल, मुने, रायली आदि शामिल है।
1937 में लूथर गुलिक तथा उर्विक ने मिलकर लोक प्रशासन पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक का संपादन किया जिसका नाम "Papers on the Science of Administration" है। इसमें उन सभी सामान्य समस्याओं का अध्ययन किया गया है जिजिन्हे  POSDCORB शब्द में समाहित किया गया हैं। द्वितीय चरण के इन सभी विद्वानों की यह मान्यता रही कि प्रशासन में सिद्धांत होने के कारण यह एक विज्ञान है और इसलिए इसके आगे लोक शब्द लगाना उचित नहीं है। सिद्धांत तो सभी जगह लागू होते हैं चाहे वह लोग क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र।

3. तीसरा चरण (1938-1947)
लोक प्रशासन के विकास का तीसरा चरण चुनोतियों का काल कहा जाता है। इस समय में लोक प्रशासन के सिद्धांतों को चुनोतियां दी गई मुख्यता अमेरिकी विद्वान हर्बर्ट साइमन द्वारा लोक प्रशासन के सिद्धांतों को कहावतें कहा गया। सन 1946 में हर्बर्ट साइमन ने अपने एक लेख में तथाकथित सिद्धांतों की हंसी उड़ाई। उन्होंने 1947 में "Administrative Behavior" पुस्तक के अंतर्गत सिद्धांतों की उपेक्षा की। इस विषय के चिंतन को आगे बढ़ाने में साइमन, स्मिथबर्ग और थामसन की "Public Administration"  चेस्टन बर्नार्ड  की "Function of the Executive" तथा हर्बर्ट साइमन की पुस्तक  "Administrative Behavior" का प्रमुख स्थान है।

4. चौथा चरण (1948-1970)
इस काल को पहचान के संकट का काल भी काहा जाता हैं। इस समय में सबसे बड़ी समस्या लोक प्रशासन की पहचान बनाये रखने की थी। इस काल में लोक प्रशासन को राजनीति से अलग न मानकर , राजनीति का ही एक भाग माना गया तथा लोक प्रसासन के सिद्धांतों को नकार दिया तथा इसकी कड़ी आलोचना की गई जिनका जवाब लोक प्रशासन के सिद्धांतों की रचना करने वाले लेखकों के पास नहीं था। इस कारण लोक प्रशासन के सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया।

  • प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1968)
1960 के दशक के अंतिम वर्षों में अमेरिकी समाज में अशांति का माहौल था। सरकार को चारों ओर से सरकारी अकुशलता गैर उत्तरदायित्व तथा समस्याओं के प्रति लापरवाही के कारण कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था। वियतनाम युद्ध में भारी आर्थिक हानि तथा वाटरगेट स्कैंडल के कारण जनता में गुस्सा बढ़ रहा था। इन सब के खिलाफ युवा पीढ़ी के द्वारा समकालीन समस्याओं के समाधान तथा लोक प्रशासन में सुधार के लिए सन 1968 में प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में "नवीन लोक प्रशासन" के विचार का समर्थन किया गया। प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन लोक प्रशासन में नवीन परिवर्तनों के लिए जाना जाता है जो इस प्रकार है :-
  • सामाजिक समस्याओं के प्रति प्रासंगिक
  • लोक प्रशासन में नैतिकता का महत्व
  • सामाजिक समानता व न्याय
अतः नवीन लोक प्रशासन के नए दौर की शुरुआत हुई।

नवीन लोक प्रशासन NEW PUBLIC ADMINISTRATION
नवीन लोक प्रशासन का अभिप्राय हैं- किसी भी प्रचलित व्यवस्था में प्राचीन तकनीको या विधियों के स्थान पर नयी  तकनीक एवं विधियों को लागू करना
1960 के दशक के अंतिम वर्षों में विद्वानों ने लोक प्रशासन में मूल्य और नैतिकता पर बल देना आरंभ किया। उन्होंने कहा की कार्यकुशलता ही समूचा लोक प्रशासन नहीं है समस्त प्रशासनिक क्रियाकलापों का केंद्र "मनुष्य" है जो आवश्यक नहीं है कि उन आर्थिक कानूनों जिनका प्रति कार्य कुशलता है, के अधीन ही हो अतः लोक प्रशासन में मूल्य का होना आवश्यक है। इस प्रवृत्ति को नवीन लोक प्रशासन का नाम दिया गया।
  • जहां परंपरागत प्रशासन नकारात्मक था वहीं नवीन लोक प्रशासन सकारात्मक लोक हितकारी तथा आदर्शात्मक है।
  • नवीन लोक प्रशासन विकेंद्रीकरण की धारणा में विश्वास करता है।
  • परंपरागत लोक प्रशासन मूल्य शून्यता दक्षता और तटस्थता में विश्वास करता है जबकि नवीन लोक प्रशासन नैतिकता सामाजिक उपयोगिता और प्रतिबद्धता में विश्वास करता है।


5. पांचवा चरण (1971-1990)
1971 के बाद लोक प्रशासन के अध्ययन में अभूतपूर्व उन्नति हुई। राजनीति शास्त्र के अलावा अर्थशास्त्र मनोविज्ञान समाजशास्त्र आदि के विद्वानों ने भी इसमें रुचि लेना प्रारंभ किया फल स्वरुप लोक प्रशासन अंतर्विषयी Interdisciplinary बन गया। इस समय में लोक प्रशासन की अन्य विषयों से तुलना कर विश्लेषण निकाला जाने लगा।

  • दूसरा मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1988) तथा नवीन लोक प्रबंधन की शुरुआत 
दूसरे मिन्नो ब्रुक सम्मेलन को लोक प्रशासन के विकास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। इस सम्मेलन के परिणाम स्वरुप नवीन लोक प्रबंधन का जन्म हुआ। नवीन लोक प्रबंधन के जन्म का कारण अर्थव्यवस्था का ग्लोबलाइजेशन, बाजार शक्तियों का संवर्धन तथा अहस्तछेप पर जोर व प्रतियोगी व्यवस्था पर जोर को माना जाता है। इस मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1988) में नौकरशाही व्यवस्था की कड़ी आलोचना की गई तथा उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का समर्थन किया गया जेन एरिक लेन के अनुसार "निजी उद्यमों में प्रयुक्त होने वाली प्रबंधकीय तकनीकों को सार्वजनिक क्षेत्र में लागू करना नवीन लोक प्रबंधन है।"
नवीन लोक प्रबंधन के अंतर्गत निम्न बातों पर जोर दिया गया :-
  1.  लागत व्यय को कम कर के लोक प्रशासन को मितव्ययी बनाना।
  2. नीति के स्थान पर प्रबंधन व कार्यकुशलता पर ध्यान केंद्रित करना।
  3. नौकरशाही की नियंत्रण शक्ति के जन्म को कम करना।
  4. प्रबंधन की ऐसी व्यवस्था जिसमें उत्पादन लक्ष्यों आर्थिक, प्रोत्साहन और प्रबंधन संबंधी स्वायत्तता पाई जाती हो।
  5. शासन सरकार के विकेंद्रीकरण में विश्वास।


6. छठा चरण (1991 से अब तक)
1991 के बाद लोक प्रशासन में नए बदलाव देखने को मिले इसी दौर में वैश्वीकरण का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा था जिस कारण लोक प्रशासन पर भी इसका स्वभाविक प्रभाव पड़ा अब लोक प्रशासन में निम्न पहलुओं पर जोर दिया जाने लगा :-
  • विकेंद्रीकरण
  • निजीकरण
  • लैंगिक समानता
  • आर्थिक कुशलता
  • उत्पादन में वृद्धि
  • E-Govt.
इसके साथ-साथ अब लोक प्रशासन में "Public Choice Approach" की शुरूआत हो  चली है।

वैश्वीकरण तथा लोक प्रशासन
वैश्वीकरण एक ऐसी परिघटना है जिसके कारण लोक प्रशासन के सिद्धांतिक तथा व्यवहारिक स्वरुप बदल गया है। वैश्वीकरण ने लोक प्रशासन में कार्यात्मक व संरचनात्मक दोनों स्वरुप में परिवर्तन ला दिया है। संरचनात्मक तौर पर कठोर पदसोपान एक और नौकरशाही स्वरूप के स्थान पर अब लचीला कम पदसोपान एक तथा सहभागिता पर अधिक जोर दिया जाने लगा। इसी प्रकार कार्यात्मक तौर पर लोक प्रशासन में लोक सेवा के स्वरुप में परिवर्तन देखने को मिला।
वैश्वीकरण के कारण अब कल्याणकारी राज्य गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर वस्तू व सेवा प्रदान करने लगी। इस प्रकार वैश्वीकरण के दौर में लोक प्रशासन को निजीकरण के सहायता से अधिक समर्थ वह सुगम बनाने का प्रयास किया गया।

  • तीसरा मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (2008)
तीसरे मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (2008) में, वैश्वीकरण के दौर में लोक प्रशासन को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था उस पर चर्चा की गई इसके अलावा इस सम्मेलन में लोक प्रशासन के भविष्य की रूपरेखा व स्वरूपों पर भी चर्चा की गई। इस सम्मेलन में इस दौर के मुख्य विचारको जैसे -Fredrickson, Rosemary आदि ने भाग लिया इस सम्मेलन में चर्चा के मुख्य बिंदु निम्नलिखित थे :- 
  1.  वैश्वीकरण के बदलते परिदृश्य में लोक प्रशासन की प्रकृति व स्वरूप
  2.  बाजार आधारित नवीन लोक प्रबंधन की जटिलता
  3. Interdisciplinary  अंतर्विषयी लोक प्रशासन के प्रभाव

तीसरे मिन्नोब्रुक सम्मेलन (2008) में इसके मानव स्वरूप को पुनः स्पष्ट करने का प्रयास किया गया जिसे दूसरे मिन्नोब्रुक सम्मेलन में भुला दिया गया था।
इस प्रकार मिलो ब्रुक सम्मेलन के द्वारा लोक प्रशासन को नवीन समस्याओं के प्रति समर्थ व प्रभावशील तथा इसके समाधान के लिए योग्य बनाने की ओर एक प्रयास था

संक्षेप में निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन का एक विषय के रूप में विकास विभिन्न चरणों से होकर गुजरा है इन विभिन्न चरणों में लोक प्रशासन के विषय तथा स्वरूप में भी परिवर्तन देखने को मिला हैं।