Saturday, 22 August 2020

टेलर - वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत F W Taylor - Principle of scientific managemen

फ्रेडरिक विंस्लो टेलर - वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत





फ्रेडरिक विंस्लो टेलर को वैज्ञानिक प्रबंधन का जनक माना जाता है वे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के आरंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका में उद्योग के प्रबंधन पर गंभीर शोध प्रयास किए। टेलर का मानना था कि 'सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन एक सच्चा विज्ञान' है जो हर तरह की मानवीय गतिविधियों में लागू होता है इसलिए आम तौर पर उनका न केवल वैज्ञानिक प्रबंधन के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है बल्कि उन्हें आधुनिक प्रबंधन तकनीकों और उपागमों का प्रणोता भी समझा जाता है। हर उस व्यक्ति के लिए जिसका प्रबंधन से नाता है उनके लिए टेलर के वैज्ञानिक प्रबंधन के विचार का ध्यान पूर्वक अध्ययन आवश्यक बन जाता है।




वैज्ञानिक प्रबंधन का विकास

अमेरिका के व्यवसायिक वातावरण में 19वीं शताब्दी के बाद में औद्योगिकरण की एक नई बयार आनी शुरू हुई जिसमें एक प्रबंधकीय वर्ग का विकास हुआ। प्रबंधन का दायरा रोजमर्रा की समस्याओं को सुलझा ने मात्र से ज्यादा व्यापक हो गया। इसमें धीरे-धीरे सभी तरह के व्यापक समस्याओं का निदान समाहित होने लगा। निदान की पद्धति भी शीघ्र होने के बजाय लंबी अवधि वाले और तार्किक हो गई।

इस तरह प्रबंधन एक ऐसे समस्या निवारक उपागम के रूप में उभरा जैसा कि वह पहले कभी नहीं था हेनरी आर. टाउन और हेनरी मैटकाफ जैसे अग्रणी लोगों ने प्रबंधन कि एक एकीकृत प्रणाली विकसित करने का प्रयास किया और टाउन ने प्रबंधन के इस नए दर्शन को प्रबंधन विज्ञान कहा।


वैज्ञानिक प्रबंधन के विकास में टेलर का योगदान

वैज्ञानिक प्रबंधन के विकास में ट्रेलर का योगदान उनके शोध प्रबंधों में दर्ज है जो कि इस प्रकार है :-

  • 1894 - Notes on Belting

  • 1895 - A Piece-rate System

  • 1896 - The adjustment of wages to efficiency

  • 1903 - Shop management

  • 1906 - On the art of cutting metals

  • 1911 - Principles of Scientific Management


टेलर के शोध प्रबंधन A Piece-rate System - 1895 को वेतन भुगतान सिद्धांत के रूप में एक असाधारण योगदान माना जाता है उन्होंने एक नई व्यवस्था की रूपरेखा रखी जिसके तीन हिस्से हैं:-

  1. समय के जरिए कार्य का परीक्षण और विश्लेषण ताकि दर या मानक निर्धारण किया जा सके।

  2. अंशों में कार्य की भिन्न-भिन्न दर।

  3. भुगतान व्यक्ति को करना ना कि व्यक्ति के पद को।


टेलर के शोध प्रबंधन शॉप मैनेजमेंट 1903 Shop management मे टेलर ने कार्यशाला संगठन और प्रबंधन तंत्र की विस्तार से चर्चा की है :-

  1. टेलर कहते हैं कि औद्योगिक कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए प्रबंधन का उद्देश्य उच्च वेतन देना और इकाई उत्पादन लागत को काम करने का लक्ष्य होना चाहिए।

  2. प्रबंधन तंत्र को प्रबंधन समस्याओं के निदान के लिए शोध और प्रयोग की वैज्ञानिक पद्धतियों का इस्तेमाल करना चाहिए।

  3. कार्य की दशाओं का मानकीकरण करना चाहिए और इसी के चलते श्रमिकों कि नियुक्ति का वैज्ञानिक मापदंड होना चाहिए।

  4. प्रबंधन को हर हालत में कामगारों और औपचारिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए साथ ही नए नियुक्ति कामगारों को खास निर्देश दिए जाने चाहिए जिससे कि वह काम के लिए मानक औजारों और सामग्री का ही इस्तेमाल करें।

  5. श्रमिक संगठन की वैज्ञानिक प्रणाली के आधार पर श्रमिकों और प्रबंधन के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग होना चाहिए।


वैज्ञानिक प्रबंध के मुख्य तत्व इस प्रकार हैं:-


  1. समय अध्ययन

  2. क्रियात्मक अथवा विशिष्ट पर्यवेक्षण

  3. उपकरणों का मानकीकरण

  4. कार्य पद्धतियों का मानकीकरण

  5. पृथक नियोजन कार्य

  6. उत्पाद एवं कार्य प्रणालियों की नेमोनिक प्रणाली

  7. कार्यक्रम प्रणाली

  8. आधुनिक लागत प्रणाली 

  9. अपवाद द्वारा प्रबंध का सिद्धांत

  10. ‘स्लाइड रूल्स' एवं इसी प्रकार के अन्य समय बचाने वाले साधनों का प्रयोग

  11. कार्य का आवंटन एवं सफल निष्पादन के लिए बड़ी बोनस राशि

  12. ‘विभेदात्मक दर’ का प्रयोग।


वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत

टेलर ने सामाजिक संपन्नता के हित में प्रबंधन और कामगारों के बीच वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग के लिए घनिष्ठ और वैचारिक सहयोग पर जोर दिया है। उनका प्रबंधन दर्शन आपसी हितों और वैज्ञानिक प्रबंधन के चार प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है

  1. कार्य के एक वास्तविक विज्ञान का विकास

  • वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांत कार्य के एक वास्तविक विज्ञान की खोज करना चाहता‌ है जो मजदूरों व प्रबंधकों दोनों को लाभ पहुंचाएं।

  • इस सिद्धांत का उद्देश्य किसी कर्मचारी को दिए गए कार्य के प्रेरक घटक की जांच व विश्लेषण करना है।

  • इससे इस बात की जांच होती है कि कार्य को करने में व्यक्तिगत व सामूहिक स्तर पर कितना समय लगा।

  • टेलर के अनुसार यह विधि किसी कार्य को करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका बताने में सहायता करता है।

  • यह बेहतर उत्पादन (Output) में भी सहायक है।


  1. कामगारों का वैज्ञानिक चयन

  • टेलर का मानना है कि कर्मचारियों का चयन बहुत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि यह उत्पादन के लिए आवश्यक है।

  • कर्मचारियों का चयन उनकी योग्यता व कार्यकुशलता के अनुसार होना चाहिए।

  • टेलर का अनुसार प्रबंधन तंत्र की जिम्मेदारी है कि वह कामगारों को कुशलता हासिल करने के लिए ऐसे अवसर उपलब्ध कराए जिसमें कि वे अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य को अंजाम दे सके।

  • हर कामगार को पूरी तरह वह व्यवस्थित ढंग से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।



  1. कामगारों का वैज्ञानिक शिक्षण और उनका विकास

  • टेलर के अनुसार बेहतर परिणाम के लिए विज्ञान है कामगार को एक साथ लाना होगा टेलर का मानना है कि यह जिम्मेदारी प्रबंधन की है।

  • टेलर मानते हैं कि कामगार प्रबंधन के प्रति हमेशा सहयोग का भाव रखते हैं लेकिन प्रबंधन की ओर से उन्हें उचित सहयोग नहीं मिलता।

  • टेलर के अनुसार दोनों पक्षों के साथ आने और परस्पर सामंजस्य कायम करने की इस प्रक्रिया में एक प्रकार की बौद्धिक क्रांति का जन्म होता है।


  1. लोगों और प्रबंधन के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग

  • पारंपरिक प्रबंधन सिद्धांत में कामगारों पर ही काम की पूरी जिम्मेदारी होती थी जबकि प्रबंधन पर कम जिम्मेदारी थी लेकिन टेलर के वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांत कामगारों और प्रबंधन दोनों पर ही कार्य का बराबर जवाबदेही सकता है पहले के मुकाबले अब प्रबंधन भी श्रमिक की तरह समान रूप से व्यस्त रहता है।

  • यह कार्य विभाजन दोनों में एक दूसरे के प्रति समझदारी विकसित करता है और दोनों पक्षों की आपसी निर्भरता को बढ़ाता है सहयोग की भावना भी उत्पन्न करता है। इससे झगड़ों में हड़ताल ओं में कमी होती है।


टेलर के के अनुसार इन सभी सिद्धांतों में से किसी भी सिद्धांत को अलग नहीं किया जा सकता है और ना ही अलग करने पर इन्हें वैज्ञानिक प्रबंधन की संज्ञा दी जा सकती है। वैज्ञानिक प्रबंधन इन सभी तत्वों का संयोजन है तथा इन सब का मिलाजुला रूप है।


प्रक्रियात्मक फोरमैनशिप

टेलर को रेखिक व्यवस्था अथवा सैन्य प्रकार के संगठनों की कार्यक्षमता पर संदेह था। जिसमें हर श्रमिक एक ही बॉस के अधीन होता है।

उन्होंने इस व्यवस्था की जगह एक प्रक्रियात्मक और मानसिक की व्यवस्था का प्रस्ताव रखा जिसमें श्रमिकों को आंशिक रूप से विशेषज्ञ 8 पर्यवेक्षकों अधिकारियों से आदेश प्राप्त होता है।उन्होंने आठ प्रक्रियात्मक अधिकारियों में से चार को योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी जबकि शेष चार अधिकारियों को इन योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी।

टेलर के अनुसार संगठन के इस प्रक्रियात्मक प्रकार में फोरमैन को जल्दी प्रशिक्षित किया जा सकता है। साथ ही इस ढांचे में विशेषज्ञता हासिल करनी भी आसान है। योजना और उनके निष्पादन के बीच कार्यों के विभाजन की यह अवधारणा बाद में लाइन और स्टाफ की अवधारणा की तरह कर्मचारी विशेषज्ञता के सिद्धांत में शामिल कर ली गई।


मानसिक क्रांति

टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंधन मेंसा रूप में श्रमिकों और प्रबंधन की ओर से अपने कर्त्तव्यों, कार्यों, अपने सहयोगियों तथा अपने रोजमर्रा की तमाम समस्याओं के संबंध में एक पूर्ण मानसिक क्रांति शामिल है। यह तथ्य इस बात को स्वीकार करता है कि प्रबंधन और कामगारों के हित एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। साथ ही यह भी पता चलता है कि परस्पर समृद्धि सहयोग से भी संभव है।टेलर कहते हैं कि जब तक श्रमिकों और प्रबंधकों में यह विशाल मानसिक क्रांति नहीं होती तब तक वैज्ञानिक प्रबंध का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता है।



आलोचनात्मक मूल्यांकन

हालांकि वैज्ञानिक प्रबंधन ने एक तरह से आंदोलन का रूप ले लिया था और औद्योगिक समस्याओं को हल करने की उम्मीद भी जताई थी, परंतु असंगठित मजदूर और साथ ही प्रबंधक इसके खिलाफ थे। मजदूर संघ आधुनिक 'प्रीमियम बोनस' व्यवस्था के जरिए उत्पादन बढ़ाए जाने के आधुनिक पद्धतियों के पक्षधर नहीं थे। अतः यह आश्चर्यजनक नहीं है कि इन संघ ने टेलर के सिद्धांतों की जबरदस्त आलोचना की उन्होंने टेलर वाद पर मजदूर संघों को ऐ प्रसांगिक बनाने तथा सामूहिक सौदेबाजी के सिद्धांत को नष्ट करने का आरोप लगाया।

उनके अनुसार यह पूरे मजदूर समुदाय के लिए खतरा था क्योंकि इससे सतत रूप से बेरोजगारी बढ़ सकती थी।

मजदूर संघों ने अनेक हड़ताल ओ और अमेरिकी संसद को दिए गए उनके ज्ञापन ओं के कारण सन् 1912 में अमेरिकी संसद को टेलरवाद का व्यापक समीक्षा हेतु हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की एक विशेष समिति गठित करनी पड़ी।

मजदूर संघों द्वारा टेलर के सिद्धांतों पर आधारित वैज्ञानिक प्रबंधन का लगातार विरोध होने के फलस्वरुप अमेरिका के औद्योगिक संबंध आयोग ने प्रोफेसर रॉबर्ट हाक्सी को इसकी गहरी पड़ताल करने के लिए नियुक्त किया। विस्तृत अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि टेलरवाद सचमुच यांत्रिक पहलुओं में ज्यादा दिलचस्पी लेता है यह मानवीय पहलू की या तो परवाह नहीं करता या बहुत हल्के-फुल्के ढंग से उन पर विचार करता है।




Saturday, 8 August 2020

NCERT BOOKS (POLITICAL SCIENCE)

 

 NCERT BOOKS (POLITICAL SCIENCE)
ENGLISH & HINDI MEDIUM


Class-11 Political Science Part-1 


Class-11 Political Science Part-2


Class-12 Political Science Part-1


Class-12 Political Science Part-2

लूथर गुलिक और लिंडाल उर्विक (प्रशासनिक संगठन के सिद्धांत) Luther Gulick and Lyndall Urwick

 

Luther Halsey Gulick
लूथर हाल्सी गुलिक

(1892–1993)


लूथर हाल्सी गुलिक एक अमेरिकी राजनीतिज्ञ थे उनका जन्म 1892 में जापान के शहर ओशाका में हुआ था। उन्होंने 1920 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में काम किया तथा सन् 1954-56 तक न्यूयॉर्क के नगर प्रशासक के रूप में सेवा की इसके साथ ही वह न्यूयॉर्क स्थित लोक प्रशासन संस्थान में 1920 से लेकर 1962 तक अध्यक्ष पद पर रहे।

गुलिक न केवल एक प्रोफेसर के रूप में अनेक विश्वविद्यालयों में कार्यरत रहे बल्कि एक प्रशासनिक परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में भी उन्होंने दुनिया के बहुत से देशों को अपनी सेवाएं दी। वह राष्ट्रपति के प्रशासन प्रबंधन समिति के सदस्य भी रहे। उन्होंने कई पुस्तकें और शोध निबंध लिखें।

 इनमें से कुछ प्रमुख निम्न है :- 

  • Modern management for the city of New York
  • Administrative reflections France world war II
  • Papers on the science of administration.


Lyndall Fownes Urwick
लिंडाल फाउनेस उर्विक 

(1891-1983)


लिंडाल फाउनेस उर्विक का जन्म सन् 1891 में ब्रिटेन में हुआ था। उनकी शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लिंडाल उर्विक ब्रितानी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर कार्यरत थे। इस दौरान वह अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन संगठनों से जुड़े हुए थे इन्हीं दिनों उन्होंने एक प्रतिष्ठित औद्योगिक प्रबंधन परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में ख्याति मिली। उनकी अनेक पुस्तकें व लेख प्रकाशित हुई जिनमें उल्लेखनीय है:-

  • Management of tomorrow
  • The making of scientific management
  • The element of administration
  • Papers on the science of administration


गुलिक तथा उर्विक दोनों को न केवल सिविल सेवा बल्कि सैन्य संगठनों और औद्योगिक उपक्रमों के कार्यपद्धती का भी खूब अनुभव था। यही कारण है कि इन दोनों के लेखन में दक्षता और अनुशासन का निरंतर जिक्र आता है। उन्होंने सैन्य संगठन से लाइन और स्टाफ जैसी कुछ अवधारणाएं उधार भी ली।


गुलिक तथा उर्विक  टेलर द्वारा विकसित मानव के मशीन मॉडल से बहुत अधिक प्रभावित थे। हेनरी फयोल द्वारा किए गए औद्योगिक प्रबंधन के अध्ययन से भी इन दोनों के विचार का काफी हद तक प्रभावित थे।


इन दोनों लेखकों के लेखकों में एक ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्होंने प्रशासन की संरचना पर ध्यान दिया जबकि संगठन में लोगों की भूमिका की प्राय उपेक्षा की।

संगठन की संरचना में अभिकल्पन (Design) प्रक्रिया के महत्व को समझाते हुए गुलिक तथा उर्विक ने ऐसे सिद्धांतों की खोज में अपना ध्यान लगाया जिनके द्वारा संरचना का खाका खींचा जा सके। अपनी इस खोज में गुलिक हेनरी फेयोल के उन 14 मूल तत्वों से बेहद प्रभावित थे, जिन्हें उन्होंने प्रशासन के मुख्य गुणों की संज्ञा दी है।


गुलिक ने संगठन के 10 सिद्धांत सुझाए गए हैं यह इस प्रकार हैं:-

  1. कार्य विभाजन अथवा विशेषीकरण
  2. विभागीय संगठनों का आधार
  3. पदसोपान (Hierarchy) के माध्यम से समन्वय
  4. सुविचारित समन्वय
  5. समितियों के अंतर्गत समन्वय
  6. विकेंद्रीकरण
  7. आदेश की एकता
  8. स्टाफ और लाइन
  9. प्रत्यायोजन (Delegation)
  10. नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र

उर्विक ने संगठन के आठ सिद्धांतों की पहचान की है जो इस प्रकार है:-


  1. उद्देश्यों का सिद्धांत - संगठन के उद्देश्यों की अभिव्यक्ति करनी चाहिए।
  2. अनुरूपता का सिद्धांत - सत्ता और उत्तरदायित्व दोनों एक दूसरे के बराबर होने चाहिए।
  3. उत्तरदायित्व का सिद्धांत - अपने कार्य का उत्तरदायित्व
  4. स्केलर सिद्धांत ।
  5. नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र का सिद्धांत - एक वरिष्ठ अधिकारी (अपने नीचे के) पांच या छह लोगों से अधिक के कार्य का पर्यवेक्षण नहीं कर सकता।
  6. विशेषीकरण का सिद्धांत - एक व्यक्ति का कार्य एक ही (विशेष) प्रकार का हो।
  7. समन्वय का सिद्धांत।
  8. परिभाषा का सिद्धांत - प्रत्येक के कर्तव्य का स्पष्ट निर्धारण।


इसके बाद उन्होंने (उर्विक) फेयोल के 14 प्रशासनिक सिद्धांतों मूनी एवं रिले के सिद्धांत प्रक्रिया और प्रभाव टेलर के प्रबंधन सिद्धांत तथा फोलेट के विचारों को एकीकृत करके 29 सिद्धांत तथा उनके उप सिद्धांत विकसित किए जो इस प्रकार हैं:-

1 अन्वेषण, 2 पूर्वानुमान, 3 योजना, 4 संगति, 5 संगठन, 6 समन्वय, 7 व्यवस्था, 8 आदेश, 9 नियंत्रण, 10 समन्वय कारी सिद्धांत, 11 सत्ता, 12 परिमापन प्रक्रिया, 13 कार्य का सौंपा जाना, 14 नेतृत्व, 15 प्रत्यायोजन, 16 प्रक्रियात्मक परिभाषा, 17 निश्चायक,  18 कार्यान्वयन की क्षमता, 19 निर्वाचन क्षमता, 20 सामान्य हित, 21 केंद्रीय करण, 22 कर्मचारी नियुक्ति करना, 23 आत्मा, 24 चयन और नियुक्ति, 25 पुरस्कार एवं प्रतिबंध, 26 पहल, 27 समानता, 28 अनुशासन, 29 स्थिरता।


नेतृत्व की अवधारणा (उर्विक):-

नेतृत्व की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उर्विक ने कहा है कि नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार का ऐसा गुण है जिसके द्वारा अन्य व्यक्ति नेता का निर्देशन स्वीकार करते हैं। उर्विक ने नेतृत्व के चार कार्यो की चर्चा की है:-

  • प्रतिनिधित्व करना 
  • पहल करना 
  • उधम का प्रशासन करना 
  • विश्लेषण करना।

नेतृत्व के चार कार्यों की चर्चा के बाद उर्विक नेतृत्व के छह योग्यताएं बताई हैं:-

  • आत्मविश्वास 
  • व्यक्तित्व 
  • जीव शक्ति 
  • सामान्य बुद्धिमत्ता 
  • संप्रेक्षण क्षमता 
  • निर्णायक क्षमता

लूथर गुलिक - पोस्डकोर्ब (POSDCORB)

गुलिक ने कार्यपालिकीय कार्यों को भी अभीज्ञात किया है और एक नए शब्द पोस्डकोर्ब (POSDCORB) दिया। इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंध के किसी महत्वपूर्ण कार्य को सूचित करता है।

POSDCORB
Luther gulick - POSDCORB
  • P - Planning (योजना बनाना) :-  किसी भी कार्य करने से पहले उस कार्य की रूपरेखा का निर्धारण करना जिससे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति सरलतापूर्वक की जा सके।
  • O - Organising (संगठन बनाना) :- प्रशासनिक संगठन का ढांचा इस प्रकार से तैयार करना कि विभिन्न प्रशासकीय कार्यों का विभाजन उचित रुप में किया जा सके तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित किया जा सके।
  • S - Staffing (कर्मचारियों की उपलब्धता) :- किसी भी संगठन को अपने निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
  • D - Directing (निर्देश देना):-  विभिन्न प्रशासकीय कार्यो का विश्लेषण कर उसके अनुसार कर्मचारियों को निर्देश देना ताकि संगठन अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति से भटके नहीं।
  • Co - Co-ordinating (समन्वय स्थापित करना):- संगठन के विभिन्न विभागों के कार्यो में तालमेल स्थापित करना ताकि कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सके।
  • R - Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):-  संगठन की कार्य प्रगति के विषय में समय समय पर रिपोर्ट तैयार करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • B - Budgeting (बजट बनाना) :- किसी भी संगठन को अपने कार्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता होती हैं।

इस प्रकार प्रशासन के विद्यार्थियों को लूथर गुलिक का आभारी होना चाहिए जिन्होंने 'पोस्डकोर्ब' जैसा संकेताक्षर शब्द रचा जो महत्वपूर्ण कार्यकारी कार्यों को निरूपित करता है।

परंतु इसके बावजूद इस बात की उपेक्षा नहीं की जा सकती की 'पोस्डकोर्ब' जैसा शब्द सूत्र नीति निर्माण, मूल्यांकन और जनसंपर्क जैसी प्रक्रियाओं के बारे में कोई सूचना नहीं देता। संगठन के यह तमाम महत्वपूर्ण पहलू यहां पूरी तरह अनुपस्थित हैं।


विभागीकरण का सिद्धांत /आधार (लूथर गुलिक)

लूथर गुलिक ने ऐसे चार आधारों की तलाश की है जिनकी बदौलत कार्य बांटने यानी उपयुक्त व्यक्ति तथा उपयुक्त समूह को काम सौंपने की समस्या का हल निकाला जा सकता है। यह चार आधार इस प्रकार हैं:-

  •  उद्देश्य (Purpose)
  • प्रक्रिया (Process)
  •  व्यक्ति (Person)
  •  स्थान (Place) 

गूलिक इन्हें "P4" का नाम भी देते है।


आलोचना:-

  • एक दूसरे से मेल नहीं खाते 
  • पूर्णतः स्पष्ट नहीं है 
  • यह सिद्धांत विवेचनात्मक होने के बजाय आदेशात्मक हैं।

इसकी आलोचना भले ही की गई हो परंतु आज भी इन चारों आधारों पर विभिन्न संगठनों में विभागों का बंटवारा होता है। जैसे सरकार में - रक्षा विभाग, वित्त विभाग व कानून विभाग आदि।



लोक प्रशासन में मानवीय कारक और समय


गुलिक ने अपने हाल के लेखों में महसूस किया है कि 50 साल पहले उन्होंने लोक प्रशासन के संबंध में जो 'पेपर्स ऑन साइंस ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन' संपादित किए थे तब के मुकाबले आज के क्षेत्र में बहुत तब्दीलियां आ गई हैं यह तब्दीलियां प्रशासन की प्रकृति में हुए प्रभावशाली बदलावों के चलते आई हैं।


गुलिक ज़ोर देकर कहते हैं कि राज्य का मुख्य कार्य लोगों का कल्याण करना होना चाहिए उनके जीवन को कायम रखना और बेहतर बनाना होना चाहिए ताकि सतत बदलते हुए वातावरण की चुनौतियों का सामना किया जा सके ने की युद्ध का। मगर वह अफसोस के साथ कहते हैं कि आधुनिक राज्य की संरचना मुख्यतः युद्ध को ध्यान में रखकर की गई है। मानव मूल्य और कल्याण कहीं संदर्भ में नहीं है।

गुलिक समय के विषय में कहते हैं कि समय हर घटना के लिए महत्वपूर्ण कारक होता है इसके बिना न तो परिवर्तन हो सकता है और ना ही विकास प्रबंधन के उत्तरदायित्व को तय किए जाने और कार्यक्रम स्थितियों के लिए भी समय प्रभावी कारक होता है। मगर लोक प्रशासन में समय जैसे कारक की उपेक्षा की गई है।


उपसंहार


गुलिक तथा उर्विक ने संगठन सिद्धांतों के विषय में महत्वपूर्ण योगदान दिया है परंतु इनके सिद्धांत आलोचनाओं से परे नहीं है उनके संगठन सिद्धांतों की कड़ी आलोचना की गई है सिद्धांतों के बारे में काफी कुछ लिखने के बाद भी वह पूर्ण रूप से स्पष्ट कर पाने में असफल थे कि इनमें उनका आशय क्या है।


एलडी व्हाइट कहते हैं लाइन, स्टाफ, सहायक एजेंसियां, पदसोपान, सत्ता और केंद्रीयकरण यह तमाम शब्द प्रशासनिक स्थितियों का वर्गीकरण करने और उनका वर्णन करने में तो उपयोगी हो सकते हैं लेकिन जहां तक सवाल प्रशासन का है वैज्ञानिक सूत्रीकरण करने का है तो ये ऐसा यह नहीं करते।


हर्बर्ट साइमन कहते हैं कि प्रशासन के इन सिद्धांतों में सबसे बड़ी खामी यह है कि सबके साथ इनका विलोमर्थी सिद्धांत भी जुड़ा है अर्थात यह सिद्धांत एक दूसरे के विरोधाभासी प्रतीत होते हैंउदाहरण के लिए विशेष उपकरण के सिद्धांत और आदेश की एकता सिद्धांत के बीच असंगति को देखा जा सकता है


गुलिक तथा उर्विक के प्रशासनिक अध्ययन की एक खामी यह भी है कि उन्होंने सिर्फ औपचारिक संगठनों का अध्ययन किया है और अनौपचारिक संगठनों की प्रक्रियाओं की उन्होंने पूर्णता अनदेखी की है जबकि यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि संगठन हमेशा औपचारिक मॉडल के अनुरूप नहीं होते।

इसके अलावा इनके सिद्धांतों में मानवीय पक्ष की उपेक्षा साफ देखी जा सकती है।


इन विभिन्न आलोचनाओं के बावजूद लूथर व गुलिक के प्रशासनिक सिद्धांतों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमें पोस्डकोर्ब जैसी बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल है।