दास्तान ए डेमोक्रेसी
Hello दोस्तों,
आज मैं आपसे अपने इस ब्लॉग ( Rajneetikstudy ) के माध्यम से हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर अपना चिंतन जाहिर करना चाहता हूं । जैसा कि आप जानते हैं कि पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हो चुके हैं तथा उनके नतीजे भी घोषित हो चुके है। जहां उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में BJP को ऐतिहासिक रूप से भारी बहुमत मिला तो वही पंजाब में कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिला। परंतु गोवा तथा मणिपुर की विधानसभा में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला दोनों ही राज्य में कांग्रेस पार्टी पहले पायदान पर तथा बीजेपी दूसरे पायदान पर रही परंतु यहां BJP को केंद्र में सत्ता वह अपनी मजबूत स्थिति का लाभ मिला तथा जोड़-तोड़ व अन्य माध्यमों के द्वारा BJP में इन राज्यों में अपनी सरकार बनाने में कामयाबी रही।
इस बार के चुनावों में जो एक खास व अलग बात देखने को मुझे मिली वह मीडिया का रवैया, इस बार 5 राज्यों में चुनाव थे परंतु मीडिया में चर्चा का विषय केवल उत्तर प्रदेश व उसके बाद पंजाब तक ही सीमित नजर आ रहा था ऐसा लग रहा था मानो जैसे मणिपुर व गोवा में पंचायत चुनाव हो रहा हो।
आज मैं आपसे इसी मणिपुर विधानसभा चुनावों के विषय में बात करने जा रहा हूं। इस बार मणिपुर में एक नए राजनीतिक दल (People's Resurgence and Justice Alliance PRJA ) ने चुनाव में भाग लिया जिसका नेतृत्व इरोम शर्मिला कर रही थी जी हां यह वही 'आयरन लेडी' Irom Chanu Sharmila है जिन्होंने 16 सालों तक मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (Armed Forces Special Power Act) के खिलाफ संघर्ष किया।
9 August 2016 को उन्होंने अपना 16 साल लंबे उपवास का अंत किया। हालांकि डॉक्टरों द्वारा उन्हें पहले कई बार अपने उपवास खत्म करने की सलाह दी गई थी। परंतु उन्होंने किसी की राय ना मानते हुए इसे अपनी संघर्ष के तौर पर जारी रखने का फैसला किया। परंतु 9 अगस्त 2016 को उन्होंने अपना उपवास खत्म कर दिया शायद वह भी भारतीय राजनेताओं के रवैया से परिचित हो चुकी थी और उन्हें लगने लगा था कि इस उपवास से नेता टस से मस न होने वाले हैं।
उपवास का अंत कर इरोम ने अपने संघर्ष को एक नए रूप में जारी रखने का प्रण लिया ।
“I will join politics and my fight will continue”
“There is no democracy in Manipur. I want to be Chief Minister of Manipur and make positive changes”
उन्होंने राजनीति में उतरने का फैसला किया उन्हें लगता था कि जो कार्य नेताओं ने नहीं किया वह स्वयं राजनीति के मैदान में उतर कर जनता के समर्थन के द्वारा उसे अंजाम देंगी । इरोम शर्मिला ने मणिपुर के थोउलबाल सीट से तीन बार से रहे कांग्रेस के मुख्यमंत्री ओक्रम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा। उनके चुनाव प्रचार का भी एक अलग ही स्वरुप देखने को मिला जहां वह घर घर जा कर लोगों से खुद को वोट देने की अपील कर रही थी वही कई बार तो वह साइकिल से ही चुनाव प्रचार के लिए निकल जाती थी।
उनके पास न तो बहुत सारा चुनावी फंड था और ना ही किसी कॉरपोरेट घराने का साथ वह केवल अपनी ईमानदारी व संघर्ष के बूते चुनाव में उतरी थी। परंतु मीडिया में कवरेज इस प्रकार हो रही थी जैसे उत्तर प्रदेश व पंजाब के अलावा और कहीं चुनाव ही ना हो रहे हो। इरोम शर्मिला ने अपने चुनाव प्रचार में केवल साठ हजार रुपए खर्च किए।
आप यह तो जानते होंगे कि वह चुनाव हार गई पर क्या आप जानते हैं वह कितने वोट पाने में सफल रही केवल 90, जी हां केवल 90 वोट ही पा सकी आयरन लेडी जिन्होंने अपने जीवन के अमूल्य 16 वर्ष जनता पर हो रहे अन्याय वह जुल्म के खिलाफ लगा दिए उन्हें चुनावों में केवल 90 वोट ही नसीब हुए। चुनाव में पराजय मिलने के बाद इरोम शर्मिला ने कहा कि वह अब कभी किसी भी चुनाव में भाग नहीं लेंगी।
खैर जो हुआ सो हुआ । अब आप यूपी चुनाव में निर्वाचित हुए विधायकों से संबंधित इन आंकड़ों को देखिए
जहां एक और हमारा देश भ्रष्टाचार महंगाई वह बेरोजगारी तथा विभिन्न राज्यों में गुंडागर्दी जैसे समस्याओं का सामना कर रहा है वहीं दूसरी और हमारे प्रतिनिधि के तौर पर किस प्रकार के नेता चुनकर आ रहे हैं। एक और तो हम बड़े बड़े बातें करते हैं कि देश में यह बदलाव होना चाहिए वह बदलाव होना चाहिए और देश का विकास होना चाहिए तथा भारत सुपर पावर बनना चाहिए वहीं दूसरी और हम किन नेताओं को अपने इन सपनों को साकार करने का जिम्मा देते हैं क्या यह नेता वास्तव में हमारे सपनों का भारत हमें देने में सक्षम है हमारा वोट देने से पहले इस बारे में ईमानदारी से सोचना बहुत जरूरी है।
क्या अब भारतीय लोकतंत्र में चुनाव केवल बाहुबल, धनबल तथा मीडिया प्रचार के माध्यम से ही लड़ा जाएगा और क्या नेता जाति और धर्म के आधार पर ही वोट मांगेंगे और जनता भी उन्ही के आधार पर अपना मतदान करेगी। यदि हां तो हमें अपने भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के बारे में एक बार जरुर सोच लेना चाहिए कि भारतीय राजनीति में जिस प्रकार आपराधिक परवर्ती के स्वार्थी वह बाहुबली नेता की संख्या बढ़ती जा रही है आगे चलकर भारतीय लोकतंत्र का क्या भविष्य होगा।
Note :- चुनाव व नेता तथा उनकी पृष्ठभूमि से संबंधित अन्य विभिन्न प्रकार की जानकारियों के लिए आप www.adrindia.org पर जा सकते हैं