Saturday, 23 December 2017

लोक प्रशासन की अवधारणा Public Administration

लोक प्रशासन (Public Administration)


परिचय


लोक प्रशासन को एक अध्ययन विषय के रूप में  देखा जाए तो  इसका इतिहास लगभग 130 वर्ष पुराना है परंतु एक गतिविधि के तौर पर लोक प्रशासन मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही मौजूद रहा है। यह बात अलग है कि प्राचीन काल के लोक प्रशासन की तुलना में आधुनिक लोक प्रशासन की प्रकृति में बदलाव आ गया है। प्राचीन लोक प्रशासन का चरित्र अधिनायकवादी, कुलीन व पितृसत्तात्मक आधारित था तथा इसका मुख्य उद्देश्य  कानून व्यवस्था को लागू करना व राजस्व वसूली करना था। लोक कल्याण के कार्य कभी-कभार ही होते थे। प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति  राजनय वर्ग के द्वारा की जाती थी। अतः जब से मानव ने संगठित होकर रहना प्रारंभ किया है तब से ही लोक प्रशासन का अस्तित्व है तथा मानव सभ्यता के साथ-साथ इसके स्वरुप में भी बदलाव होता रहा है।

वर्तमान में लोक प्रशासन का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है तथा यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रहा है।  अब लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जनसेवा तथा मानव जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी करना है।


लोक प्रशासन, प्रशासन का ही एक भाग है अतः लोक प्रशासन को सही रूप में समझने से पहले प्रशासन को समझना आवश्यक है।

प्रशासन Administration


प्रशासन यानी Administration लेटिन भाषा के Ad तथा Ministarare शब्द के योग से बना है जिसका अर्थ है "काम करवाना"। 16वीं शताब्दी के बाद प्रशासन का अर्थ प्रबंधन से लगाया जाने लगा। परंतु आधुनिक विचारको की माने तो प्रशासन एक सुनिश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए मनुष्य द्वारा आपसी सहयोग से की जाने वाली एक सामूहिक क्रिया है।
प्रशासन का अर्थ शासित या अनुशासित करना है। इसका आशय यह है कि इस क्रिया में अनेक व्यक्तियों को विशिष्ट अनुशासन में रखते हुए उनसे एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कराया जाता है। सरल शब्दों में प्रशासन एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहयोगी ढंग से किया जाने वाला कार्य है। इस तरह प्रशासन के लिए सहयोगी संगठन और सामाजिक हित का उद्देश्य होना आवश्यक है।

प्रशासन की परिभाषाएं :-

प्रशासन का संबंध निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्य करवाने से है
-लूथर गुलिक

व्यापक दृष्टि से प्रशासन की परिभाषा यह कही जा सकती है कि यह समूहों की वह क्रियाएं हैं जो सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपसी सहयोग द्वारा की जाती हैं
-साइमन स्मिथबर्ग एवं थॉम्पसन

निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला सामूहिक कार्य है
-अरस्तु

निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय तथा भौतिक संसाधनों के संगठन और संचालन को प्रशासन कहते हैं
-पिफनर और प्रेस्थस

किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बहुत से मनुष्य का निर्देशन समन्वय तथा नियंत्रण ही प्रशासन की कला है
-एल. डी. व्हाइट

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रशासन निम्नलिखित लक्षण से युक्त है :-
  • प्रशासन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाने वाला कार्य है।
  •  प्रशासन करने वाले के पास अधिकार होता है कि वह दूसरों को कार्य में सहयोग के लिए कहे।
  • प्रशासन में एक से अधिक व्यक्ति सहयोग भाव से कार्य करते हैं।
  • प्रशासन का उद्देश्य इस क्रिया में भाग लेने वाले व्यक्तियों के उद्देश्य से भी होता है। ( उदाहरण के लिए यदि कोई सरकार जन कल्याण की कोई नीति बनाता है तथा उसे लागू करता है तो उसका उद्देश्य जनता की करना होता है परंतु इस में काम करने वाले कर्मचारियों का उद्देश्य अपनी आजीविका कमाना होता है )
अतः विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न व्यक्तियों के सहयोग से किया जाने वाले कार्य के प्रबंधन को प्रशासन कहते हैं है।

लोक प्रशासन Public Administration 

लोक प्रशासन का अर्थ:-

लोक प्रशासन "प्रशासन" का ही एक भाग है अर्थात प्रशासन के विस्तृत क्षेत्र का एक भाग है। लोक प्रशासन "लोक" Public तथा "प्रशासन" Administration से मिलकर बना है।
लोक शब्द सार्वजनिकता व आम जनता की भागीदारी का प्रतीक है तथा प्रशासन से अभिप्राय जनता की सेवा व कार्य प्रबंधन से है। तथा लोक प्रशासन का संबंध सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन करने से होता है।
अतः लोक कल्याण की सार्वजनिक गतिविधियों का प्रबंधन अथवा सरकारी कार्यों व नीतियों का प्रबंधन करना लोक प्रशासन कहलाता है।

लूथर गुलिक के अनुसार - लोक प्रशासन प्रशासन का वह अंग है जिसका संबंध सरकार से है और इस प्रकार मुख्य रूप से लोक प्रशासशन का संबंध कार्यपालिका से है।

पर्सीमेक्वीन के अनुसार - लोक प्रशासन सरकार के कार्यों से संबंधित होता है, चाहे वे केन्द्र द्वारा सम्पादित हों अथवा स्थानीय निकाय द्वारा।

व्हाइट के अनुसार - लोक प्रशासन में वह गतिविधियां आती हैं जिनका उद्देश्य सार्वजनिक नीति को पूरा करना या क्रियांवित करना होता है।

वुडरो विल्सन के अनुसार- लोक प्रशासन नियम या कानून को विस्तृत एवं क्रमबद्ध रूप में क्रियांवित करने का काम है कानून को क्रियांवित करने के लिए प्रतिक्रिया प्रशासकीय क्रिया है।

लोक प्रशासन का स्वरुप (Nature of Public Administration) :-


प्रबंधकीय दृष्टिकोण (The Managerial View):-

प्रबंधकीय दृष्टिकोण के अनुसार केवल उच्च स्तरीय प्रशासन के कार्य प्रशासन में शामिल माने जा सकते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करना प्रशासन नहीं बल्कि कार्य करवाना प्रशासन है इस विचार के समर्थक साइमन, थामसन, सिम्थबर्ग तथा गुलिक आदि है।

एकीकृत दृष्टिकोण (The Integral View) :-

एकीकृत दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करना तथा कार्य करवाना दोनों ही प्रशासन में आते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला क्रियाओं का समग्र योग लोक प्रशासन में आता है इस दृष्टिकोण के अनुसार संगठन में चपरासी से लेकर प्रबंधक तक सभी प्रशासन का भाग है इस सिद्धांत के समर्थक एल डी वाइट, पिफनर और एफ. एम. मार्क्स आदि हैं।


लोक प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Public Administration) :-


लोक प्रशासन के क्षेत्र की व्यापकता को देखते हुए इसके  क्षेत्र के विषय में कई दृष्टिकोण पाई जाती हैं:-

# पोस्डकोर्ब ( POSDCORB ) दृष्टिकोण

पोस्डकोर्ब शब्द का निर्माण लूथर गुलिक द्वारा किया गया उन्होंने कार्यपालिका के प्रशासन कार्य को ज्ञात किया और एक नए शब्द का निर्माण किया इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंधन के किसी महत्वपूर्ण कार्य का सूचक है।


  • P - Planning (योजना बनाना) :-  किसी भी कार्य करने से पहले उस कार्य की रूपरेखा का निर्धारण करना जिससे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति सरलतापूर्वक की जा सके
  • O - Organising (संगठन बनाना) :- प्रशासनिक संगठन का ढांचा इस प्रकार से तैयार करना कि विभिन्न प्रशासकीय कार्यों का विभाजन उचित रुप में किया जा सके तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित किया जा सके
  • S - Staffing (कर्मचारियों की उपलब्धता) :- किसी भी संगठन को अपने निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
  • D - Directing (निर्देश देना):-  विभिन्न प्रशासकीय कार्यो का विश्लेषण कर उसके अनुसार कर्मचारियों को निर्देश देना ताकि संगठन अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति से भटके नहीं।
  • Co - Co-ordinating (समन्वय स्थापित करना):- संगठन के विभिन्न विभागों के कार्यो में तालमेल स्थापित करना ताकि कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सके।
  • R - Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):-  संगठन की कार्य प्रगति के विषय में समय समय पर रिपोर्ट तैयार करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • B - Budgeting (बजट बनाना) किसी भी संगठन को अपने कार्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता होती हैं। 

 अतः वित्तीय संबंधी लेन देन के विषय में बजट तैयार करना आवश्यक होता है।

# संकुचित दृष्टिकोण :- 

इस दृष्टिकोण के समर्थक विद्वानों के अनुसार लोक प्रशासन का संबंध केवल शासन की कार्यपालिका से है। इसमें संगठन के सभी कार्यों को सम्मिलित नहीं किया जाता हैं, केवल कार्यपालिका प्रबंधकीय कार्यों को शामिल किया जाता है। ....

# आधुनिक दृष्टिकोण:-

आधुनिक दृष्टिकोण के विचारको के अनुसार सभी प्रकार के सार्वजनिक प्रशासनिक कार्य चाहे वह स्थानीय स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर हो और चाहे वह सलाहकार हो या कार्यवाहक हो, संगठन तथा कार्य प्रणालीयाँ आदि सभी लोक प्रशासन के अंतर्गत आते है। ....

# लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण:-

इस दृष्टिकोण के अनुसार राज्य और प्रशासन एक सामान है। इस दृष्टिकोण के अनुसार वर्तमान समय में राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी है उसी प्रकार लोक प्रशासन भी लोक कल्याणकारी है अतः दोनों का उद्देश्य जनकल्याण है। इस प्रकार इस विचारधारा के अनुसार लोक प्रशासन का क्षेत्र जनता के हित में किए जाने वाले समस्त कार्यों तक फैला हुआ है।

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन (Public and Private Administration) :-


लोक प्रशासन और निजी प्रशासन के विषय में दो दृष्टिकोण प्रचलित हैं एक दृष्टिकोण दोनों में अंतर नहीं मानता है जबकि दूसरा दृष्टिकोण दोनों में अंतर करता है।


Similarities between Public and Private Administration

 प्रथम दृष्टिकोण समानता का दृष्टिकोण है इस के समर्थक फ्रेंच विचारक हेनरी फेयोल, मेरी पार्कर और और उर्विक है।  ये विचारक दोनों को एक-सा मानते हैं इस दृष्टिकोण के समर्थक मानते हैं कि:-

* निजी प्रशासन और लोक प्रशासन दोनों में ही जनसंपर्क की आवश्यकता पड़ती है ।

* प्रशासन चाहे शासकीय तौर पर किया जाए चाहे निजी तौर पर संगठन की आवश्यकता दोनों में पढ़ती है।

*बड़ा उद्यम चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी की समुचित प्रशासन के लिए नियोजन संगठन आदेश समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

*दोनों तरह के प्रशासन में अधिकारियों को समान रुप से उत्तरदायित्व दिए जाते हैं अधिकारियों में समानता और कौशल पर बल दिया जाता है।

* दोनों तरह के प्रशासन में प्रबंधन व संगठन संबंधी अनेक तकनीकें समान होती है। जैसे तथ्य उपलब्ध करवाना रिपोर्ट जारी करना संबंधी अनेक क्रियाएं दोनों प्रशासन में पाई जाती हैं


Differences between Public and Private Administration :-


दूसरा दृष्टिकोण असामानता का दृष्टिकोण है जिसके समर्थकों में साइमन तथा अपलबी जैसे विद्वान शामिल है इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में अंतर है।
 हर्बर्ट साइमन के अनुसार सामान्य व्यक्तियों की दृष्टि में निजी प्रशासन गैर-राजनीतिक और चुस्ती से काम करने वाले माने जाते हैं जो सार्वजनिक प्रशासन से भिन्न होते हैं।


लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य जन सेवा तथा लोक कल्याण होता है परंतु निजी प्रशासन का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।

लोक प्रशासन जनता के प्रति जवाबदेह होता हैं परंतु निजी प्रशासन जनता के प्रति इतना जिम्मेदार या जवाबदेह नहीं होता है।

लोक प्रशासन द्वारा ऐसे कार्य किए जाते हैं जो निजी तौर पर पूरे नहीं किए जा सकते इसीलिए बड़े क्षेत्रों जैसे रेलवे व् डाक आदि लोक प्रशासन के अंतर्गत रखे जाते हैं।

लोक प्रशासन का क्षेत्र काफी व्यापक होता है जबकि निजी प्रशासन संकुचित क्षेत्र तक सीमित रहता है।

लोक प्रशासन का संगठन नौकरशाही आधारित होता है परंतु निजी प्रशासन का संगठन व्यापारिक आधार पर होता है

लोक प्रशासन के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारी स्थाई होते हैं जबकि निजी प्रशासन में कार्यरत कर्मचारी अस्थाई होते हैं

लोक प्रशासन में निजी लोक प्रशासन की तुलना में पक्षपात पूर्ण व्यवहार किए जाने की संभावना बहुत कम होती है।


लोक प्रशासन का महत्व (Significance of Public Administration) :-


लोक प्रशासन का महत्व वर्तमान के आधुनिक काल में लोक प्रशासन का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है राज्य का का स्वरूप अधिनायकवादी तथा पितृसत्तात्मक आधारित से बदलकर आज के आधुनिक युग में कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित हो चुका है अतः राज्य के दायित्व में बढ़ोतरी के साथ-साथ लोक प्रशासन का महत्व भी निरंतर बढ़ता जा रहा है इसलिए वर्तमान युग को प्रशासनिक राज्य का युग भी कहा जाता है

लोक कल्याणकारी
राज्य वर्तमान समय में राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी हो गया है। लोक कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य जनकल्याण के कार्य करना होता है। राज्य लोक हित के लक्ष्यों की पूर्ति बिना प्रशासन के सहयोग के नहीं कर सकता आर्थिक जीवन के लक्ष्य प्रशासन की कार्यकुशलता के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं। लोक कल्याणकारी राज्य की सफलता पर शासकीय कुशलता पर आधारित होती है।

लोकतंत्रात्मक शासन
वैसे प्रशासन का महत्व तो प्रत्येक प्रणाली में है परंतु लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में इस का विशेष महत्व है। लोकतंत्र में प्रशासन सेवक की भूमिका निभाता है। प्रशासन का उद्देश्य सार्वजनिक हित होता है और प्रशासन की भूमिका सृजनात्मक होती है।

नीतियों को व्यवहारिक जामा पहनाने के लिए
 नीतियों को व्यवहारिक बनाने की लिए लोक प्रशासन का विशेष महत्व है। लोक प्रशासन सामाजिक आवश्यकता और आर्थिक बचत की दृष्टि से ऐसे निर्णय लेता है जिससे नीति को व्यवहारिकता प्राप्त होती है।

निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए
 निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए लोकप्रशासन बेहद महत्वपूर्ण है विभिन्न आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लोक प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है

सामाजिक स्थिरता व सामाजिक परिवर्तन के लिए
सामाजिक स्थिरता के निर्माण में लोकप्रशासन का बहुत महत्व हैं। वर्तमान समय में प्राथमिक आवश्यकताओं की व्यवस्था करना लोक प्रशासन की कार्यकुशलता पर निर्भर है।सामाजिक जीवन में परिस्थितियों के परिवर्तन आदि के कारण बदलाव का चक्र चलता रहता है।जिससे राजनीतिक व्यवस्था में उथल-पुथल होती रहती है और सरकारी बदलती रहती है परंतु ऐसी स्थिति में प्रशासन का ढांचा समाज को स्थिरता प्रदान करती है।

युद्ध काल में
युद्ध के समय लोक प्रशासन की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है देश की रक्षा के लिए संपूर्ण जन शक्ति और उसके समस्त साधनों का संगठन व नियमन आवश्यक होता है लोक प्रशासन इस दायित्व का निर्वाह करत में लोक प्रशासन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहती है

इसके अलावा अन्य कई क्षेत्रों में लोक प्रशासन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

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सारांश :-

आधुनिक सभ्यता के विकास में लोक प्रशासन का अहम योगदान राहा है
लोक प्रशासन, राज्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण उपकरण है फिर चाहे राजतंत्र शासन व्यवस्था हो या लोकतंत्र हो  लोक प्रशासन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। 21वीं सदी में राज्य के स्वरूप में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है
 आज कल्याणकारी राज्य के दौर में राज्य का मुख्य उद्देश्य जनता की आवश्यकता की पूर्ति करना है जिसमे लोक प्रशासन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।
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Saturday, 1 July 2017

संयुक्त राष्ट्र संघ United Nation Organization

United Nation Organization



Background


  • प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) तथा मित्र राष्ट्रों की जीत
  • 1919 पेरिस शांति सम्मेलन - इस शांति सम्मेलन के दौरान 30 से अधिक राष्ट्र मौजूद थे परंतु Germany व् USSR को नहीं बुलाया गया
  • पेरिस शांति सम्मेलन के परिणाम स्वरुप विश्व शांति के लिए League of International Org. ( League of Nation ) की स्थापना की गई। इसकी प्रथम बैठक 16 जनवरी 1920 को जेनेवा में आयोजित की गई। परंतु जिन उद्देश्यों के साथ इसकी स्थापना की गई थी यह उनको पूरा कर पाने में नाकाम साबित रहा ।
  • 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध की शरुआत हो गई तथा league of Nation विश्व शांति कायम करने में नाकाम रहा , विभिन्न आलोचक इसकी प्रभावहीनता को लेकर इसकी करते है।
  • परिणाम स्वरुप League of Nation का 20 अप्रैल 1946 को अंत हो गया

United Nation Organization

  • League of Nation की विफलता तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण सन1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की स्थापना की गई।
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) से संबंधित कुछ रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को की गई।
  • United Nation शब्द का प्रतिपादन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट के द्वारा किया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर 26 जून 1945 को San Francisco में हस्ताक्षर किए गए थे।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर सर्वप्रथम 50 सदस्य राष्ट्रों + Poland ( कुछ समय बाद ) ने हस्ताक्षर किए थे।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में 19 अध्याय Chapter तथा 111 अनुच्छेद Articels शामिल थे। For more details about UNO Charter Click Here 
  • भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य 30 अक्टूबर 1945 को बना ( भारत शुरुआती 51 सदस्य देशों में शामिल था )।
    • 191st member of UNO - Switzerland (2002)
    • 192nd member of UNO - Montenegro (2006)
    • 193rd member of UNO - South Sudan ( 2011)
  • संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यू यॉर्क शहर के मैनहट्टन द्वीप पर स्थित है
  • संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय 17 एकड़ जमीन पर बना है तथा जिसकी 39 मंजिला इमारत है।

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा 6 भाषाओं को (Arabic, Chinese, English,French, Russian and Spanish) औपचारिक भाषाओं का दर्जा दिया गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रथम बैठक = Jan 1946 Wese Minister Center Hall London
  • महासभा की प्रथम बैठक = New York , Oct 1952
  • 20 नवंबर 2002 में संयुक्त राष्ट्र संघ में मृत्युदंड की समाप्ति के लिए एक प्रस्ताव लाया गया ( महासभा में ) जिस पर 110 पक्ष में तथा 39 विपक्ष में वोट पड़े तथा 36 ऐसे जिन्होंने वोट नहीं किया तथा भारत इसके विपक्ष में था। यह एक Non Binding Resolution था।

     
1. - महासभा ( General Assembly )

First President of G. A. = Paul Henri Spaak ( Belgium )
Present President of G.A. = Peter Thomson ( Fiji )

  • महा सभा की प्रथम बैठक 10 जनवरी 1946 को Westminster central Hall , London में आयोजित की गई थी जिसमें 51 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
  • महासभा में प्रत्येक सदस्य देश 5 प्रतिनिधि भेज सकते हैं, परंतु उनका वोट केवल एक ही होता है।
  • प्रत्येक वर्ष नियमित सत्र की शुरुआत पर महासभा में एक नए अध्यक्ष , 21 उपाध्यक्ष और महासभा के 7 मुख्य समितियों के अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।
  • सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य देशों में से महासभा के अध्यक्ष का चुनाव नहीं किया जा सकता है।
  • श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ( पंडित जवाहरलाल नेहरु की बहन ) 1953 में 8वीं अध्यक्ष चुनी गई थी। वह प्रथम महिला अध्यक्ष तथा प्रथम भारतीय अध्यक्ष थी।
  • Argentina इकलौता ऐसा देश है जहां से महासभा के लिए दो बार अध्यक्ष चुने गए हैं। (1948 & 1988 )
  • महासभा का वर्ष में कम से कम एक बार सत्र ( बैठक ) आयोजित करना आवश्यक होता है।


2. - सुरक्षा परिषद ( Security Council )


  • सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं जिनमें 5 स्थाई सदस्य होते हैं तथा 10 अस्थाई सदस्यों का चुनाव 2 वर्षों के लिए किया जाता है।
  • 10 अस्थाई सदस्यों का चुनाव एक साथ नहीं होता बल्कि 5 सदस्यों का एक बार तथा 5 सदस्यों का अगले साल के क्रम में होता है।
  • सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य हैं :- America , France , U.K. , Rassia , Chaina
  • भारत सुरक्षा परिषद में 7 बार अस्थाई सदस्य रह चुका है।
  • सुरक्षा परिषद के पांचो स्थाई सदस्यों के पास एक विशेष अधिकार Veto Power होता है। इस अधिकार ( Art 27 ) के द्वारा सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य किसी भी प्रस्ताव निरस्त कर सकते हैं।
  • Use of Veto Total 269 times ( till 2012 )
USSR / Russia - 127
USA - 83
UK - 32
France - 18
Chaina - 9

  • अमेरिका ने लगभग 45 बार Veto का प्रयोग मध्य पूर्व से संबंधित विषयों तथा इजरायल के विषय में किया है।
  • सुरक्षा परिषद में Veto Power की मांग USSR leader Joseph Stalin द्वारा Yalta conference ( feb1945 ) के दौरान किया गया था।


3. - आर्थिक एवं सामाजिक परिषद ( Economic and Social Council )


  • वर्तमान में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की सदस्य संख्या 54 है।
  • प्रारंभ में इसकी सदस्य संख्या 18 थी , 1966 ई० में संशोधन के बाद 27 तथा फिर 1973 ई० के संसोधन के बाद इसकी संख्या 54 कर दी गई।
  • इसके सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
  • यह एक स्थाई संस्था है इसके एक तिहाई सदस्य प्रतिवर्ष पदमुक्त होते हैं परंतु अवकाश ग्रहण करने वाला सदस्य पुणे निर्वाचित हो सकता है।
  • आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की बैठक वर्ष में दो बार होती है - अप्रैल में न्यूयॉर्क में तथा जुलाई में जेनेवा में।

4.- प्रन्यास परिषद ( Trusteeship )


  • 1994 ई० में अमेरिका द्वारा प्रशासित प्रशांत द्वीप पलाऊ के स्वतंत्र होने के साथ ही प्रन्यास परिषद ( Trusteeship ) के कार्य लगभग समाप्त हो गए हैं।
  • यह संस्था फिलहाल क्रियाशील नहीं है।
  • जिन देशों को न्यास का भार सौंपा गया था वह देश हैं- Australia, New Zealand, America and Britain।

5.- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ( International of Justice - ICJ )

  • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना हेग (नीदरलैंड) में 3 अप्रैल 1946 को की गई थी।
  • इसमें न्यायाधीशों की संख्या 15 रखी गई है इनकी नियुक्ति 9 वर्षों के लिए होती है प्रत्येक 3 वर्ष बाद 5 न्यायाधीशअवकाश ग्रहण करते है ।
  • किसी एक देश से दो न्यायधीश एक साथ इसमें पद ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
  • न्यायाधीश अपने में से ही किसी एक को अध्यक्ष के पद पर तथा उपाध्यक्ष को 3 वर्षों के लिए चुनते हैं।
  • न्यायालय का कोरम संख्या 9 है।
  • न्यायाधीश की योग्यता :- उसके अपने देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यता ही होती है।
  • I C J का जज अन्य कोई पद धारण नहीं कर सकता।
  • I C J के जज को पद से हटाने के लिए अन्य 14 जजों के सहमति की आवश्यकता होती है।
  • इस न्यायालय में भारत की ओर से नागेंद्र सिंह अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं तथा आर एस पाठक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुके हैं।
  • I C J में जजों की नियुक्ति का अनुपात इस प्रकार से है:- 3 Judges from Asia, 3 Africa, 2 Latin America, 2 Eastern Europe, 5 Western Europe ।
  • Chaina के अलावा सभी "P5 country" के जज I C J में रह चुके हैं।

6.- सचिवालय ( Secretariat )

  • सचिवालय (UNO) के वर्तमान महासचिव António Guterres हैं।

  • सचिवालय का प्रमुख महासचिव होता है। जिसे महासभा द्वारा सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर 5 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है महासचिव को दोबारा भी नियुक्त किया जा सकता है।
  • घोषणा पत्र के अनुसार महासचिव संगठन का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है।
  • कोफी अन्नान ( घाना )के कार्यकाल के दौरान उप महासचिव पद की शुरुआत हुई।

List of Secretaries-General

S. No. Name                                  Country            Date in office

1.   Trygve Lie                                  Narway               1946 to 1952

2.   Dag Hammarskjold                  Sweden               1953 to 1961

3.   U Thant                            Burma / Mayamar       1961 to 1971

4.   Kurt Waldheim                         Austria                1972 to 1981

5.   Javier Perezde Cuellar             Peru                    1982 to 1991

6.   Boutros Boutros Ghali             Egypt                  1992 to 1996

7.   Kafi Annan                                 Ghana                1997 to 2006

8.   Ban Ki Moon                              South Korea      2007 to 2016

9.   Antonio Guterres                      Portugal            2017 to .....


संयुक्त राष्ट्र संघ के विषय में अधिक जानकारी के लिए यह http://www.un.,/en/index.html  देखे।

Thursday, 1 June 2017

G K : - Age Limits in Indian Constitution


65 years upper age limit for appointment as a

  • Judge of Supreme Court (Article 124)
  • Attorney General ( Article 76 (1))
  • Comptroller General ( Article 148)
  • Member of Public Service Commission ( Articles 315 to 323 of Part XIV)
62 years upper age limit for appointment as a

  • Judge of High court ( Article 141)
  • Advocate General ( Article 165)
  • Member of State Commission
35 years minimum age for election to the post of

  • President( Article 52)
  • Vice-President ( Article 63)
  • Governor ( for each state) Articles 153 of the Constitution of India).
30 year minimum age for election of

  • MP (Rajya Sabha)
  • MLC
25 years minimum age for election of

  • MP (Lok Sabha)
  • MLA
21 years minimum marriageable age for

  • A male
18 years minimum marriageable age for

  • A female.
14 years minimum age limit for employment in

  • A factory
For 6 to 14 years of age

  • Education has been made a fundamental right Part III

Wednesday, 10 May 2017

दास्तान ए डेमोक्रेसी

दास्तान ए डेमोक्रेसी





Hello दोस्तों,
आज मैं आपसे अपने इस ब्लॉग ( Rajneetikstudy ) के माध्यम से हाल में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर अपना चिंतन जाहिर करना चाहता हूं । जैसा कि आप जानते हैं कि पांच राज्यों में चुनाव संपन्न हो चुके हैं तथा उनके नतीजे भी घोषित हो चुके है।  जहां उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में BJP को ऐतिहासिक रूप से भारी बहुमत मिला तो वही पंजाब में कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिला। परंतु गोवा तथा मणिपुर की विधानसभा में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिला दोनों ही राज्य में कांग्रेस पार्टी पहले पायदान पर तथा बीजेपी दूसरे पायदान पर रही परंतु यहां BJP को केंद्र में सत्ता वह अपनी मजबूत स्थिति का लाभ मिला तथा जोड़-तोड़ व अन्य माध्यमों के द्वारा BJP में इन राज्यों में अपनी सरकार बनाने में कामयाबी रही।

इस बार के चुनावों में जो एक खास व अलग बात देखने को मुझे मिली वह मीडिया का रवैया, इस बार 5 राज्यों में चुनाव थे परंतु मीडिया में चर्चा का विषय केवल उत्तर प्रदेश व उसके बाद पंजाब तक ही सीमित नजर आ रहा था ऐसा लग रहा था मानो जैसे मणिपुर व गोवा में पंचायत चुनाव हो रहा हो।
आज मैं आपसे इसी मणिपुर विधानसभा चुनावों के विषय में बात करने जा रहा हूं। इस बार मणिपुर में एक नए राजनीतिक दल (People's Resurgence and Justice Alliance PRJA ) ने चुनाव में भाग लिया जिसका नेतृत्व इरोम शर्मिला कर रही थी जी हां यह वही 'आयरन लेडी' Irom Chanu Sharmila  है जिन्होंने 16 सालों तक मणिपुर में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम  (Armed Forces Special Power Act) के खिलाफ संघर्ष किया। 

9 August 2016 को उन्होंने अपना 16 साल लंबे उपवास का अंत किया। हालांकि डॉक्टरों द्वारा उन्हें पहले कई बार अपने उपवास खत्म करने की सलाह दी गई थी। परंतु उन्होंने किसी की राय ना मानते हुए इसे अपनी संघर्ष के तौर पर जारी रखने का फैसला किया। परंतु 9 अगस्त 2016 को उन्होंने अपना उपवास खत्म कर दिया शायद वह भी भारतीय राजनेताओं के रवैया से परिचित हो चुकी थी और उन्हें लगने लगा था कि इस उपवास से नेता टस से मस न होने वाले हैं। 

उपवास का अंत कर इरोम ने अपने संघर्ष को एक नए रूप में जारी रखने का प्रण लिया ।
“I will join politics and my fight will continue” 
“There is no democracy in Manipur. I want to be Chief Minister of Manipur and make positive changes”
उन्होंने राजनीति में उतरने का फैसला किया उन्हें लगता था कि जो कार्य नेताओं ने नहीं किया वह स्वयं राजनीति के मैदान में उतर कर जनता के समर्थन के द्वारा उसे अंजाम देंगी । इरोम शर्मिला ने मणिपुर के थोउलबाल सीट से तीन बार से रहे कांग्रेस के मुख्यमंत्री ओक्रम इबोबी सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ा। उनके चुनाव प्रचार का भी एक अलग ही स्वरुप देखने को मिला जहां वह घर घर जा कर लोगों से खुद को वोट देने की अपील कर रही थी वही कई बार तो वह साइकिल से ही चुनाव प्रचार के लिए निकल जाती थी।


उनके पास न तो बहुत सारा चुनावी फंड था और ना ही किसी कॉरपोरेट घराने का साथ वह केवल अपनी ईमानदारी व संघर्ष के बूते चुनाव में उतरी थी। परंतु मीडिया में कवरेज इस प्रकार हो रही थी जैसे उत्तर प्रदेश व पंजाब के अलावा और कहीं चुनाव ही ना हो रहे हो। इरोम शर्मिला ने अपने चुनाव प्रचार में केवल साठ हजार रुपए खर्च किए।

आप यह तो जानते होंगे कि वह चुनाव हार गई पर क्या आप जानते हैं वह कितने वोट पाने में सफल रही केवल 90, जी हां केवल 90 वोट ही पा सकी आयरन लेडी जिन्होंने अपने जीवन के अमूल्य 16 वर्ष जनता पर हो रहे अन्याय वह जुल्म के खिलाफ लगा दिए उन्हें चुनावों में केवल 90 वोट ही नसीब हुए। चुनाव में पराजय मिलने के बाद इरोम शर्मिला ने कहा कि वह अब कभी किसी भी चुनाव में भाग नहीं लेंगी।

खैर जो हुआ सो हुआ । अब आप यूपी चुनाव में निर्वाचित हुए विधायकों से संबंधित इन आंकड़ों को देखिए

जहां एक और हमारा देश भ्रष्टाचार महंगाई वह बेरोजगारी तथा विभिन्न राज्यों में गुंडागर्दी जैसे समस्याओं का सामना कर रहा है वहीं दूसरी और हमारे प्रतिनिधि के तौर पर किस प्रकार के नेता चुनकर आ रहे हैं। एक और तो हम बड़े बड़े बातें करते हैं कि देश में यह बदलाव होना चाहिए वह बदलाव होना चाहिए और देश का विकास होना चाहिए तथा भारत सुपर पावर बनना चाहिए वहीं दूसरी और हम किन नेताओं को अपने इन सपनों को साकार करने का जिम्मा देते हैं क्या यह नेता वास्तव में हमारे सपनों का भारत हमें देने में सक्षम है हमारा वोट देने से पहले इस बारे में ईमानदारी से सोचना बहुत जरूरी है।
क्या अब भारतीय लोकतंत्र में चुनाव केवल बाहुबल, धनबल तथा मीडिया प्रचार के माध्यम से ही लड़ा जाएगा और क्या नेता जाति और धर्म के आधार पर ही वोट मांगेंगे और जनता भी उन्ही के आधार पर अपना मतदान करेगी। यदि हां तो हमें अपने भारतीय लोकतंत्र के भविष्य के बारे में एक बार जरुर सोच लेना चाहिए कि भारतीय राजनीति में जिस प्रकार आपराधिक परवर्ती के स्वार्थी वह बाहुबली नेता की संख्या बढ़ती जा रही है आगे चलकर भारतीय लोकतंत्र का क्या भविष्य होगा।

Note :- चुनाव व नेता तथा उनकी पृष्ठभूमि से संबंधित अन्य विभिन्न प्रकार की जानकारियों के लिए आप www.adrindia.org पर जा सकते हैं

Monday, 1 May 2017

लोक प्रशासन का विकास

एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ 18वीं शताब्दी के अंत में प्रकाशित विषय विश्वकोश "फैडरलिस्ट" के 72 वे परिछेद में अमेरिका के प्रथम वित्त मंत्री अलेक्जेंडर हैमिल्टन ने  लोक प्रशासन का अर्थ और क्षेत्र की स्पष्ट व्याख्या की और इसके बाद फ्रेंच लेखक चार्ल्स जीन बैनीन ने इस विषय पर Theory of public Administration  नामक प्रथम पुस्तक लिखी।
परंतु इस शास्त्र के जनक होने का श्रेय प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक वुडरो विल्सन को प्राप्त है जिन्होंने 1887 में प्रकाशित अपने लेख The Study Of Administration में इस शास्त्र के वैज्ञानिक आधार को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। लोक प्रशासन के इतिहास या विकास को निम्न चरणों में बांटा जा सकता है


1. पहला चरण (1887-1926)
एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म 1887 से माना जाता है। अमेरिका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के तत्कालीन प्राध्यापक वुडरो विल्सन को इस शास्त्र का जनक माना जाता है। उन्होंने 1887 में प्रकाशित अपने लेख "The Study of Administration" में प्रशासन के वैज्ञानिक आधार को विकसित करने पर बल दिया तथा राजनीति और प्रशासन को अलग-अलग बताते हुए कहा "एक संविधान का निर्माण सरल है परंतु इसे चलाना या लागू करना कठिन है" उन्होंने इस चलाने के क्षेत्र के अध्ययन पर बल दिया जो प्रशासन है। उन्होंने राजनीति और प्रशासन में भेद कर इसका अध्ययन किया।
इस चरण के अन्य विचारको में फ्रैंक गुडनाउ हैं जिन्होंने 1900 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "Public Administration" में तर्क प्रस्तुत किया की राजनीति और प्रशासन अलग-अलग हैं क्योंकि राजनीति राज्य की नीतियों का निर्माण है तथा प्रशासन उन नीतियों का क्रियान्वन है।
सन 1926 में एल डी वाइट की पुस्तक "Introduction to the study of Public Administration" प्रकाशित हुई वह लोक प्रशासन की पहली पाठ्य पुस्तक थी जिसने राजनीति प्रप्रशास के अलगाव में विश्वास व्यक्त किया अर्थात राजनीति व प्रशासन का अलग-अलग अध्ययन किया।


2. दूसरा चरण (1927-1937)
लोक प्रशासन के इतिहास में द्वितीय चरण का प्रारंभ हम डब्लू एफ़ विलोबी की पुस्तक "Principles of Public Administration"  से मान सकते हैं। विलोबी के अनुसार लोक प्रशासन में अनेक सिद्धांत ऐसे हैं जिनको क्रियांवित करने में लोक प्रशासन को सुधारा जा सकता है।इस चरण को लोक प्रशासन का सिद्धांतों का काल कहा जाता है।
विलोबी की पुस्तक के बाद अनेक विद्वानों ने लोक प्रशासन पर पुस्तकें लिखनी शुरू की जिनमे- मेरी पार्कर, फोलेट, हेनरी फेयोल, मुने, रायली आदि शामिल है।
1937 में लूथर गुलिक तथा उर्विक ने मिलकर लोक प्रशासन पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक का संपादन किया जिसका नाम "Papers on the Science of Administration" है। इसमें उन सभी सामान्य समस्याओं का अध्ययन किया गया है जिजिन्हे  POSDCORB शब्द में समाहित किया गया हैं। द्वितीय चरण के इन सभी विद्वानों की यह मान्यता रही कि प्रशासन में सिद्धांत होने के कारण यह एक विज्ञान है और इसलिए इसके आगे लोक शब्द लगाना उचित नहीं है। सिद्धांत तो सभी जगह लागू होते हैं चाहे वह लोग क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र।

3. तीसरा चरण (1938-1947)
लोक प्रशासन के विकास का तीसरा चरण चुनोतियों का काल कहा जाता है। इस समय में लोक प्रशासन के सिद्धांतों को चुनोतियां दी गई मुख्यता अमेरिकी विद्वान हर्बर्ट साइमन द्वारा लोक प्रशासन के सिद्धांतों को कहावतें कहा गया। सन 1946 में हर्बर्ट साइमन ने अपने एक लेख में तथाकथित सिद्धांतों की हंसी उड़ाई। उन्होंने 1947 में "Administrative Behavior" पुस्तक के अंतर्गत सिद्धांतों की उपेक्षा की। इस विषय के चिंतन को आगे बढ़ाने में साइमन, स्मिथबर्ग और थामसन की "Public Administration"  चेस्टन बर्नार्ड  की "Function of the Executive" तथा हर्बर्ट साइमन की पुस्तक  "Administrative Behavior" का प्रमुख स्थान है।

4. चौथा चरण (1948-1970)
इस काल को पहचान के संकट का काल भी काहा जाता हैं। इस समय में सबसे बड़ी समस्या लोक प्रशासन की पहचान बनाये रखने की थी। इस काल में लोक प्रशासन को राजनीति से अलग न मानकर , राजनीति का ही एक भाग माना गया तथा लोक प्रसासन के सिद्धांतों को नकार दिया तथा इसकी कड़ी आलोचना की गई जिनका जवाब लोक प्रशासन के सिद्धांतों की रचना करने वाले लेखकों के पास नहीं था। इस कारण लोक प्रशासन के सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया।

  • प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1968)
1960 के दशक के अंतिम वर्षों में अमेरिकी समाज में अशांति का माहौल था। सरकार को चारों ओर से सरकारी अकुशलता गैर उत्तरदायित्व तथा समस्याओं के प्रति लापरवाही के कारण कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था। वियतनाम युद्ध में भारी आर्थिक हानि तथा वाटरगेट स्कैंडल के कारण जनता में गुस्सा बढ़ रहा था। इन सब के खिलाफ युवा पीढ़ी के द्वारा समकालीन समस्याओं के समाधान तथा लोक प्रशासन में सुधार के लिए सन 1968 में प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में "नवीन लोक प्रशासन" के विचार का समर्थन किया गया। प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन लोक प्रशासन में नवीन परिवर्तनों के लिए जाना जाता है जो इस प्रकार है :-
  • सामाजिक समस्याओं के प्रति प्रासंगिक
  • लोक प्रशासन में नैतिकता का महत्व
  • सामाजिक समानता व न्याय
अतः नवीन लोक प्रशासन के नए दौर की शुरुआत हुई।

नवीन लोक प्रशासन NEW PUBLIC ADMINISTRATION
नवीन लोक प्रशासन का अभिप्राय हैं- किसी भी प्रचलित व्यवस्था में प्राचीन तकनीको या विधियों के स्थान पर नयी  तकनीक एवं विधियों को लागू करना
1960 के दशक के अंतिम वर्षों में विद्वानों ने लोक प्रशासन में मूल्य और नैतिकता पर बल देना आरंभ किया। उन्होंने कहा की कार्यकुशलता ही समूचा लोक प्रशासन नहीं है समस्त प्रशासनिक क्रियाकलापों का केंद्र "मनुष्य" है जो आवश्यक नहीं है कि उन आर्थिक कानूनों जिनका प्रति कार्य कुशलता है, के अधीन ही हो अतः लोक प्रशासन में मूल्य का होना आवश्यक है। इस प्रवृत्ति को नवीन लोक प्रशासन का नाम दिया गया।
  • जहां परंपरागत प्रशासन नकारात्मक था वहीं नवीन लोक प्रशासन सकारात्मक लोक हितकारी तथा आदर्शात्मक है।
  • नवीन लोक प्रशासन विकेंद्रीकरण की धारणा में विश्वास करता है।
  • परंपरागत लोक प्रशासन मूल्य शून्यता दक्षता और तटस्थता में विश्वास करता है जबकि नवीन लोक प्रशासन नैतिकता सामाजिक उपयोगिता और प्रतिबद्धता में विश्वास करता है।


5. पांचवा चरण (1971-1990)
1971 के बाद लोक प्रशासन के अध्ययन में अभूतपूर्व उन्नति हुई। राजनीति शास्त्र के अलावा अर्थशास्त्र मनोविज्ञान समाजशास्त्र आदि के विद्वानों ने भी इसमें रुचि लेना प्रारंभ किया फल स्वरुप लोक प्रशासन अंतर्विषयी Interdisciplinary बन गया। इस समय में लोक प्रशासन की अन्य विषयों से तुलना कर विश्लेषण निकाला जाने लगा।

  • दूसरा मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1988) तथा नवीन लोक प्रबंधन की शुरुआत 
दूसरे मिन्नो ब्रुक सम्मेलन को लोक प्रशासन के विकास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। इस सम्मेलन के परिणाम स्वरुप नवीन लोक प्रबंधन का जन्म हुआ। नवीन लोक प्रबंधन के जन्म का कारण अर्थव्यवस्था का ग्लोबलाइजेशन, बाजार शक्तियों का संवर्धन तथा अहस्तछेप पर जोर व प्रतियोगी व्यवस्था पर जोर को माना जाता है। इस मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1988) में नौकरशाही व्यवस्था की कड़ी आलोचना की गई तथा उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का समर्थन किया गया जेन एरिक लेन के अनुसार "निजी उद्यमों में प्रयुक्त होने वाली प्रबंधकीय तकनीकों को सार्वजनिक क्षेत्र में लागू करना नवीन लोक प्रबंधन है।"
नवीन लोक प्रबंधन के अंतर्गत निम्न बातों पर जोर दिया गया :-
  1.  लागत व्यय को कम कर के लोक प्रशासन को मितव्ययी बनाना।
  2. नीति के स्थान पर प्रबंधन व कार्यकुशलता पर ध्यान केंद्रित करना।
  3. नौकरशाही की नियंत्रण शक्ति के जन्म को कम करना।
  4. प्रबंधन की ऐसी व्यवस्था जिसमें उत्पादन लक्ष्यों आर्थिक, प्रोत्साहन और प्रबंधन संबंधी स्वायत्तता पाई जाती हो।
  5. शासन सरकार के विकेंद्रीकरण में विश्वास।


6. छठा चरण (1991 से अब तक)
1991 के बाद लोक प्रशासन में नए बदलाव देखने को मिले इसी दौर में वैश्वीकरण का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा था जिस कारण लोक प्रशासन पर भी इसका स्वभाविक प्रभाव पड़ा अब लोक प्रशासन में निम्न पहलुओं पर जोर दिया जाने लगा :-
  • विकेंद्रीकरण
  • निजीकरण
  • लैंगिक समानता
  • आर्थिक कुशलता
  • उत्पादन में वृद्धि
  • E-Govt.
इसके साथ-साथ अब लोक प्रशासन में "Public Choice Approach" की शुरूआत हो  चली है।

वैश्वीकरण तथा लोक प्रशासन
वैश्वीकरण एक ऐसी परिघटना है जिसके कारण लोक प्रशासन के सिद्धांतिक तथा व्यवहारिक स्वरुप बदल गया है। वैश्वीकरण ने लोक प्रशासन में कार्यात्मक व संरचनात्मक दोनों स्वरुप में परिवर्तन ला दिया है। संरचनात्मक तौर पर कठोर पदसोपान एक और नौकरशाही स्वरूप के स्थान पर अब लचीला कम पदसोपान एक तथा सहभागिता पर अधिक जोर दिया जाने लगा। इसी प्रकार कार्यात्मक तौर पर लोक प्रशासन में लोक सेवा के स्वरुप में परिवर्तन देखने को मिला।
वैश्वीकरण के कारण अब कल्याणकारी राज्य गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर वस्तू व सेवा प्रदान करने लगी। इस प्रकार वैश्वीकरण के दौर में लोक प्रशासन को निजीकरण के सहायता से अधिक समर्थ वह सुगम बनाने का प्रयास किया गया।

  • तीसरा मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (2008)
तीसरे मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (2008) में, वैश्वीकरण के दौर में लोक प्रशासन को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था उस पर चर्चा की गई इसके अलावा इस सम्मेलन में लोक प्रशासन के भविष्य की रूपरेखा व स्वरूपों पर भी चर्चा की गई। इस सम्मेलन में इस दौर के मुख्य विचारको जैसे -Fredrickson, Rosemary आदि ने भाग लिया इस सम्मेलन में चर्चा के मुख्य बिंदु निम्नलिखित थे :- 
  1.  वैश्वीकरण के बदलते परिदृश्य में लोक प्रशासन की प्रकृति व स्वरूप
  2.  बाजार आधारित नवीन लोक प्रबंधन की जटिलता
  3. Interdisciplinary  अंतर्विषयी लोक प्रशासन के प्रभाव

तीसरे मिन्नोब्रुक सम्मेलन (2008) में इसके मानव स्वरूप को पुनः स्पष्ट करने का प्रयास किया गया जिसे दूसरे मिन्नोब्रुक सम्मेलन में भुला दिया गया था।
इस प्रकार मिलो ब्रुक सम्मेलन के द्वारा लोक प्रशासन को नवीन समस्याओं के प्रति समर्थ व प्रभावशील तथा इसके समाधान के लिए योग्य बनाने की ओर एक प्रयास था

संक्षेप में निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन का एक विषय के रूप में विकास विभिन्न चरणों से होकर गुजरा है इन विभिन्न चरणों में लोक प्रशासन के विषय तथा स्वरूप में भी परिवर्तन देखने को मिला हैं।