Saturday, 22 August 2020

टेलर - वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत F W Taylor - Principle of scientific managemen

फ्रेडरिक विंस्लो टेलर - वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत





फ्रेडरिक विंस्लो टेलर को वैज्ञानिक प्रबंधन का जनक माना जाता है वे पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिन्होंने बीसवीं शताब्दी के आरंभ में संयुक्त राज्य अमेरिका में उद्योग के प्रबंधन पर गंभीर शोध प्रयास किए। टेलर का मानना था कि 'सर्वश्रेष्ठ प्रबंधन एक सच्चा विज्ञान' है जो हर तरह की मानवीय गतिविधियों में लागू होता है इसलिए आम तौर पर उनका न केवल वैज्ञानिक प्रबंधन के जनक के रूप में सम्मान किया जाता है बल्कि उन्हें आधुनिक प्रबंधन तकनीकों और उपागमों का प्रणोता भी समझा जाता है। हर उस व्यक्ति के लिए जिसका प्रबंधन से नाता है उनके लिए टेलर के वैज्ञानिक प्रबंधन के विचार का ध्यान पूर्वक अध्ययन आवश्यक बन जाता है।




वैज्ञानिक प्रबंधन का विकास

अमेरिका के व्यवसायिक वातावरण में 19वीं शताब्दी के बाद में औद्योगिकरण की एक नई बयार आनी शुरू हुई जिसमें एक प्रबंधकीय वर्ग का विकास हुआ। प्रबंधन का दायरा रोजमर्रा की समस्याओं को सुलझा ने मात्र से ज्यादा व्यापक हो गया। इसमें धीरे-धीरे सभी तरह के व्यापक समस्याओं का निदान समाहित होने लगा। निदान की पद्धति भी शीघ्र होने के बजाय लंबी अवधि वाले और तार्किक हो गई।

इस तरह प्रबंधन एक ऐसे समस्या निवारक उपागम के रूप में उभरा जैसा कि वह पहले कभी नहीं था हेनरी आर. टाउन और हेनरी मैटकाफ जैसे अग्रणी लोगों ने प्रबंधन कि एक एकीकृत प्रणाली विकसित करने का प्रयास किया और टाउन ने प्रबंधन के इस नए दर्शन को प्रबंधन विज्ञान कहा।


वैज्ञानिक प्रबंधन के विकास में टेलर का योगदान

वैज्ञानिक प्रबंधन के विकास में ट्रेलर का योगदान उनके शोध प्रबंधों में दर्ज है जो कि इस प्रकार है :-

  • 1894 - Notes on Belting

  • 1895 - A Piece-rate System

  • 1896 - The adjustment of wages to efficiency

  • 1903 - Shop management

  • 1906 - On the art of cutting metals

  • 1911 - Principles of Scientific Management


टेलर के शोध प्रबंधन A Piece-rate System - 1895 को वेतन भुगतान सिद्धांत के रूप में एक असाधारण योगदान माना जाता है उन्होंने एक नई व्यवस्था की रूपरेखा रखी जिसके तीन हिस्से हैं:-

  1. समय के जरिए कार्य का परीक्षण और विश्लेषण ताकि दर या मानक निर्धारण किया जा सके।

  2. अंशों में कार्य की भिन्न-भिन्न दर।

  3. भुगतान व्यक्ति को करना ना कि व्यक्ति के पद को।


टेलर के शोध प्रबंधन शॉप मैनेजमेंट 1903 Shop management मे टेलर ने कार्यशाला संगठन और प्रबंधन तंत्र की विस्तार से चर्चा की है :-

  1. टेलर कहते हैं कि औद्योगिक कार्यकुशलता बढ़ाने के लिए प्रबंधन का उद्देश्य उच्च वेतन देना और इकाई उत्पादन लागत को काम करने का लक्ष्य होना चाहिए।

  2. प्रबंधन तंत्र को प्रबंधन समस्याओं के निदान के लिए शोध और प्रयोग की वैज्ञानिक पद्धतियों का इस्तेमाल करना चाहिए।

  3. कार्य की दशाओं का मानकीकरण करना चाहिए और इसी के चलते श्रमिकों कि नियुक्ति का वैज्ञानिक मापदंड होना चाहिए।

  4. प्रबंधन को हर हालत में कामगारों और औपचारिक प्रशिक्षण की व्यवस्था करनी चाहिए साथ ही नए नियुक्ति कामगारों को खास निर्देश दिए जाने चाहिए जिससे कि वह काम के लिए मानक औजारों और सामग्री का ही इस्तेमाल करें।

  5. श्रमिक संगठन की वैज्ञानिक प्रणाली के आधार पर श्रमिकों और प्रबंधन के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग होना चाहिए।


वैज्ञानिक प्रबंध के मुख्य तत्व इस प्रकार हैं:-


  1. समय अध्ययन

  2. क्रियात्मक अथवा विशिष्ट पर्यवेक्षण

  3. उपकरणों का मानकीकरण

  4. कार्य पद्धतियों का मानकीकरण

  5. पृथक नियोजन कार्य

  6. उत्पाद एवं कार्य प्रणालियों की नेमोनिक प्रणाली

  7. कार्यक्रम प्रणाली

  8. आधुनिक लागत प्रणाली 

  9. अपवाद द्वारा प्रबंध का सिद्धांत

  10. ‘स्लाइड रूल्स' एवं इसी प्रकार के अन्य समय बचाने वाले साधनों का प्रयोग

  11. कार्य का आवंटन एवं सफल निष्पादन के लिए बड़ी बोनस राशि

  12. ‘विभेदात्मक दर’ का प्रयोग।


वैज्ञानिक प्रबंधन के सिद्धांत

टेलर ने सामाजिक संपन्नता के हित में प्रबंधन और कामगारों के बीच वैज्ञानिक पद्धति के प्रयोग के लिए घनिष्ठ और वैचारिक सहयोग पर जोर दिया है। उनका प्रबंधन दर्शन आपसी हितों और वैज्ञानिक प्रबंधन के चार प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है

  1. कार्य के एक वास्तविक विज्ञान का विकास

  • वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांत कार्य के एक वास्तविक विज्ञान की खोज करना चाहता‌ है जो मजदूरों व प्रबंधकों दोनों को लाभ पहुंचाएं।

  • इस सिद्धांत का उद्देश्य किसी कर्मचारी को दिए गए कार्य के प्रेरक घटक की जांच व विश्लेषण करना है।

  • इससे इस बात की जांच होती है कि कार्य को करने में व्यक्तिगत व सामूहिक स्तर पर कितना समय लगा।

  • टेलर के अनुसार यह विधि किसी कार्य को करने का सर्वश्रेष्ठ तरीका बताने में सहायता करता है।

  • यह बेहतर उत्पादन (Output) में भी सहायक है।


  1. कामगारों का वैज्ञानिक चयन

  • टेलर का मानना है कि कर्मचारियों का चयन बहुत सावधानी पूर्वक किया जाना चाहिए क्योंकि यह उत्पादन के लिए आवश्यक है।

  • कर्मचारियों का चयन उनकी योग्यता व कार्यकुशलता के अनुसार होना चाहिए।

  • टेलर का अनुसार प्रबंधन तंत्र की जिम्मेदारी है कि वह कामगारों को कुशलता हासिल करने के लिए ऐसे अवसर उपलब्ध कराए जिसमें कि वे अपनी पूरी क्षमता के साथ कार्य को अंजाम दे सके।

  • हर कामगार को पूरी तरह वह व्यवस्थित ढंग से प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।



  1. कामगारों का वैज्ञानिक शिक्षण और उनका विकास

  • टेलर के अनुसार बेहतर परिणाम के लिए विज्ञान है कामगार को एक साथ लाना होगा टेलर का मानना है कि यह जिम्मेदारी प्रबंधन की है।

  • टेलर मानते हैं कि कामगार प्रबंधन के प्रति हमेशा सहयोग का भाव रखते हैं लेकिन प्रबंधन की ओर से उन्हें उचित सहयोग नहीं मिलता।

  • टेलर के अनुसार दोनों पक्षों के साथ आने और परस्पर सामंजस्य कायम करने की इस प्रक्रिया में एक प्रकार की बौद्धिक क्रांति का जन्म होता है।


  1. लोगों और प्रबंधन के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग

  • पारंपरिक प्रबंधन सिद्धांत में कामगारों पर ही काम की पूरी जिम्मेदारी होती थी जबकि प्रबंधन पर कम जिम्मेदारी थी लेकिन टेलर के वैज्ञानिक प्रबंधन सिद्धांत कामगारों और प्रबंधन दोनों पर ही कार्य का बराबर जवाबदेही सकता है पहले के मुकाबले अब प्रबंधन भी श्रमिक की तरह समान रूप से व्यस्त रहता है।

  • यह कार्य विभाजन दोनों में एक दूसरे के प्रति समझदारी विकसित करता है और दोनों पक्षों की आपसी निर्भरता को बढ़ाता है सहयोग की भावना भी उत्पन्न करता है। इससे झगड़ों में हड़ताल ओं में कमी होती है।


टेलर के के अनुसार इन सभी सिद्धांतों में से किसी भी सिद्धांत को अलग नहीं किया जा सकता है और ना ही अलग करने पर इन्हें वैज्ञानिक प्रबंधन की संज्ञा दी जा सकती है। वैज्ञानिक प्रबंधन इन सभी तत्वों का संयोजन है तथा इन सब का मिलाजुला रूप है।


प्रक्रियात्मक फोरमैनशिप

टेलर को रेखिक व्यवस्था अथवा सैन्य प्रकार के संगठनों की कार्यक्षमता पर संदेह था। जिसमें हर श्रमिक एक ही बॉस के अधीन होता है।

उन्होंने इस व्यवस्था की जगह एक प्रक्रियात्मक और मानसिक की व्यवस्था का प्रस्ताव रखा जिसमें श्रमिकों को आंशिक रूप से विशेषज्ञ 8 पर्यवेक्षकों अधिकारियों से आदेश प्राप्त होता है।उन्होंने आठ प्रक्रियात्मक अधिकारियों में से चार को योजना बनाने की जिम्मेदारी सौंपी जबकि शेष चार अधिकारियों को इन योजनाओं को लागू करने की जिम्मेदारी सौंपी।

टेलर के अनुसार संगठन के इस प्रक्रियात्मक प्रकार में फोरमैन को जल्दी प्रशिक्षित किया जा सकता है। साथ ही इस ढांचे में विशेषज्ञता हासिल करनी भी आसान है। योजना और उनके निष्पादन के बीच कार्यों के विभाजन की यह अवधारणा बाद में लाइन और स्टाफ की अवधारणा की तरह कर्मचारी विशेषज्ञता के सिद्धांत में शामिल कर ली गई।


मानसिक क्रांति

टेलर के अनुसार वैज्ञानिक प्रबंधन मेंसा रूप में श्रमिकों और प्रबंधन की ओर से अपने कर्त्तव्यों, कार्यों, अपने सहयोगियों तथा अपने रोजमर्रा की तमाम समस्याओं के संबंध में एक पूर्ण मानसिक क्रांति शामिल है। यह तथ्य इस बात को स्वीकार करता है कि प्रबंधन और कामगारों के हित एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। साथ ही यह भी पता चलता है कि परस्पर समृद्धि सहयोग से भी संभव है।टेलर कहते हैं कि जब तक श्रमिकों और प्रबंधकों में यह विशाल मानसिक क्रांति नहीं होती तब तक वैज्ञानिक प्रबंध का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता है।



आलोचनात्मक मूल्यांकन

हालांकि वैज्ञानिक प्रबंधन ने एक तरह से आंदोलन का रूप ले लिया था और औद्योगिक समस्याओं को हल करने की उम्मीद भी जताई थी, परंतु असंगठित मजदूर और साथ ही प्रबंधक इसके खिलाफ थे। मजदूर संघ आधुनिक 'प्रीमियम बोनस' व्यवस्था के जरिए उत्पादन बढ़ाए जाने के आधुनिक पद्धतियों के पक्षधर नहीं थे। अतः यह आश्चर्यजनक नहीं है कि इन संघ ने टेलर के सिद्धांतों की जबरदस्त आलोचना की उन्होंने टेलर वाद पर मजदूर संघों को ऐ प्रसांगिक बनाने तथा सामूहिक सौदेबाजी के सिद्धांत को नष्ट करने का आरोप लगाया।

उनके अनुसार यह पूरे मजदूर समुदाय के लिए खतरा था क्योंकि इससे सतत रूप से बेरोजगारी बढ़ सकती थी।

मजदूर संघों ने अनेक हड़ताल ओ और अमेरिकी संसद को दिए गए उनके ज्ञापन ओं के कारण सन् 1912 में अमेरिकी संसद को टेलरवाद का व्यापक समीक्षा हेतु हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव की एक विशेष समिति गठित करनी पड़ी।

मजदूर संघों द्वारा टेलर के सिद्धांतों पर आधारित वैज्ञानिक प्रबंधन का लगातार विरोध होने के फलस्वरुप अमेरिका के औद्योगिक संबंध आयोग ने प्रोफेसर रॉबर्ट हाक्सी को इसकी गहरी पड़ताल करने के लिए नियुक्त किया। विस्तृत अध्ययन के दौरान उन्होंने पाया कि टेलरवाद सचमुच यांत्रिक पहलुओं में ज्यादा दिलचस्पी लेता है यह मानवीय पहलू की या तो परवाह नहीं करता या बहुत हल्के-फुल्के ढंग से उन पर विचार करता है।




Saturday, 8 August 2020

NCERT BOOKS (POLITICAL SCIENCE)

 

 NCERT BOOKS (POLITICAL SCIENCE)
ENGLISH & HINDI MEDIUM


Class-11 Political Science Part-1 


Class-11 Political Science Part-2


Class-12 Political Science Part-1


Class-12 Political Science Part-2

लूथर गुलिक और लिंडाल उर्विक (प्रशासनिक संगठन के सिद्धांत) Luther Gulick and Lyndall Urwick

 

Luther Halsey Gulick
लूथर हाल्सी गुलिक

(1892–1993)


लूथर हाल्सी गुलिक एक अमेरिकी राजनीतिज्ञ थे उनका जन्म 1892 में जापान के शहर ओशाका में हुआ था। उन्होंने 1920 में कोलंबिया विश्वविद्यालय से पीएचडी की उपाधि हासिल की। उन्होंने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में काम किया तथा सन् 1954-56 तक न्यूयॉर्क के नगर प्रशासक के रूप में सेवा की इसके साथ ही वह न्यूयॉर्क स्थित लोक प्रशासन संस्थान में 1920 से लेकर 1962 तक अध्यक्ष पद पर रहे।

गुलिक न केवल एक प्रोफेसर के रूप में अनेक विश्वविद्यालयों में कार्यरत रहे बल्कि एक प्रशासनिक परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में भी उन्होंने दुनिया के बहुत से देशों को अपनी सेवाएं दी। वह राष्ट्रपति के प्रशासन प्रबंधन समिति के सदस्य भी रहे। उन्होंने कई पुस्तकें और शोध निबंध लिखें।

 इनमें से कुछ प्रमुख निम्न है :- 

  • Modern management for the city of New York
  • Administrative reflections France world war II
  • Papers on the science of administration.


Lyndall Fownes Urwick
लिंडाल फाउनेस उर्विक 

(1891-1983)


लिंडाल फाउनेस उर्विक का जन्म सन् 1891 में ब्रिटेन में हुआ था। उनकी शिक्षा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में हुई थी। प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लिंडाल उर्विक ब्रितानी सेना में लेफ्टिनेंट कर्नल के पद पर कार्यरत थे। इस दौरान वह अनेक अंतरराष्ट्रीय प्रबंधन संगठनों से जुड़े हुए थे इन्हीं दिनों उन्होंने एक प्रतिष्ठित औद्योगिक प्रबंधन परामर्शदाता (सलाहकार) के रूप में ख्याति मिली। उनकी अनेक पुस्तकें व लेख प्रकाशित हुई जिनमें उल्लेखनीय है:-

  • Management of tomorrow
  • The making of scientific management
  • The element of administration
  • Papers on the science of administration


गुलिक तथा उर्विक दोनों को न केवल सिविल सेवा बल्कि सैन्य संगठनों और औद्योगिक उपक्रमों के कार्यपद्धती का भी खूब अनुभव था। यही कारण है कि इन दोनों के लेखन में दक्षता और अनुशासन का निरंतर जिक्र आता है। उन्होंने सैन्य संगठन से लाइन और स्टाफ जैसी कुछ अवधारणाएं उधार भी ली।


गुलिक तथा उर्विक  टेलर द्वारा विकसित मानव के मशीन मॉडल से बहुत अधिक प्रभावित थे। हेनरी फयोल द्वारा किए गए औद्योगिक प्रबंधन के अध्ययन से भी इन दोनों के विचार का काफी हद तक प्रभावित थे।


इन दोनों लेखकों के लेखकों में एक ध्यान देने वाली महत्वपूर्ण बात यह है कि इन्होंने प्रशासन की संरचना पर ध्यान दिया जबकि संगठन में लोगों की भूमिका की प्राय उपेक्षा की।

संगठन की संरचना में अभिकल्पन (Design) प्रक्रिया के महत्व को समझाते हुए गुलिक तथा उर्विक ने ऐसे सिद्धांतों की खोज में अपना ध्यान लगाया जिनके द्वारा संरचना का खाका खींचा जा सके। अपनी इस खोज में गुलिक हेनरी फेयोल के उन 14 मूल तत्वों से बेहद प्रभावित थे, जिन्हें उन्होंने प्रशासन के मुख्य गुणों की संज्ञा दी है।


गुलिक ने संगठन के 10 सिद्धांत सुझाए गए हैं यह इस प्रकार हैं:-

  1. कार्य विभाजन अथवा विशेषीकरण
  2. विभागीय संगठनों का आधार
  3. पदसोपान (Hierarchy) के माध्यम से समन्वय
  4. सुविचारित समन्वय
  5. समितियों के अंतर्गत समन्वय
  6. विकेंद्रीकरण
  7. आदेश की एकता
  8. स्टाफ और लाइन
  9. प्रत्यायोजन (Delegation)
  10. नियंत्रण का विस्तार क्षेत्र

उर्विक ने संगठन के आठ सिद्धांतों की पहचान की है जो इस प्रकार है:-


  1. उद्देश्यों का सिद्धांत - संगठन के उद्देश्यों की अभिव्यक्ति करनी चाहिए।
  2. अनुरूपता का सिद्धांत - सत्ता और उत्तरदायित्व दोनों एक दूसरे के बराबर होने चाहिए।
  3. उत्तरदायित्व का सिद्धांत - अपने कार्य का उत्तरदायित्व
  4. स्केलर सिद्धांत ।
  5. नियंत्रण के विस्तार क्षेत्र का सिद्धांत - एक वरिष्ठ अधिकारी (अपने नीचे के) पांच या छह लोगों से अधिक के कार्य का पर्यवेक्षण नहीं कर सकता।
  6. विशेषीकरण का सिद्धांत - एक व्यक्ति का कार्य एक ही (विशेष) प्रकार का हो।
  7. समन्वय का सिद्धांत।
  8. परिभाषा का सिद्धांत - प्रत्येक के कर्तव्य का स्पष्ट निर्धारण।


इसके बाद उन्होंने (उर्विक) फेयोल के 14 प्रशासनिक सिद्धांतों मूनी एवं रिले के सिद्धांत प्रक्रिया और प्रभाव टेलर के प्रबंधन सिद्धांत तथा फोलेट के विचारों को एकीकृत करके 29 सिद्धांत तथा उनके उप सिद्धांत विकसित किए जो इस प्रकार हैं:-

1 अन्वेषण, 2 पूर्वानुमान, 3 योजना, 4 संगति, 5 संगठन, 6 समन्वय, 7 व्यवस्था, 8 आदेश, 9 नियंत्रण, 10 समन्वय कारी सिद्धांत, 11 सत्ता, 12 परिमापन प्रक्रिया, 13 कार्य का सौंपा जाना, 14 नेतृत्व, 15 प्रत्यायोजन, 16 प्रक्रियात्मक परिभाषा, 17 निश्चायक,  18 कार्यान्वयन की क्षमता, 19 निर्वाचन क्षमता, 20 सामान्य हित, 21 केंद्रीय करण, 22 कर्मचारी नियुक्ति करना, 23 आत्मा, 24 चयन और नियुक्ति, 25 पुरस्कार एवं प्रतिबंध, 26 पहल, 27 समानता, 28 अनुशासन, 29 स्थिरता।


नेतृत्व की अवधारणा (उर्विक):-

नेतृत्व की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए उर्विक ने कहा है कि नेतृत्व व्यक्तियों के व्यवहार का ऐसा गुण है जिसके द्वारा अन्य व्यक्ति नेता का निर्देशन स्वीकार करते हैं। उर्विक ने नेतृत्व के चार कार्यो की चर्चा की है:-

  • प्रतिनिधित्व करना 
  • पहल करना 
  • उधम का प्रशासन करना 
  • विश्लेषण करना।

नेतृत्व के चार कार्यों की चर्चा के बाद उर्विक नेतृत्व के छह योग्यताएं बताई हैं:-

  • आत्मविश्वास 
  • व्यक्तित्व 
  • जीव शक्ति 
  • सामान्य बुद्धिमत्ता 
  • संप्रेक्षण क्षमता 
  • निर्णायक क्षमता

लूथर गुलिक - पोस्डकोर्ब (POSDCORB)

गुलिक ने कार्यपालिकीय कार्यों को भी अभीज्ञात किया है और एक नए शब्द पोस्डकोर्ब (POSDCORB) दिया। इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंध के किसी महत्वपूर्ण कार्य को सूचित करता है।

POSDCORB
Luther gulick - POSDCORB
  • P - Planning (योजना बनाना) :-  किसी भी कार्य करने से पहले उस कार्य की रूपरेखा का निर्धारण करना जिससे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति सरलतापूर्वक की जा सके।
  • O - Organising (संगठन बनाना) :- प्रशासनिक संगठन का ढांचा इस प्रकार से तैयार करना कि विभिन्न प्रशासकीय कार्यों का विभाजन उचित रुप में किया जा सके तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित किया जा सके।
  • S - Staffing (कर्मचारियों की उपलब्धता) :- किसी भी संगठन को अपने निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
  • D - Directing (निर्देश देना):-  विभिन्न प्रशासकीय कार्यो का विश्लेषण कर उसके अनुसार कर्मचारियों को निर्देश देना ताकि संगठन अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति से भटके नहीं।
  • Co - Co-ordinating (समन्वय स्थापित करना):- संगठन के विभिन्न विभागों के कार्यो में तालमेल स्थापित करना ताकि कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सके।
  • R - Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):-  संगठन की कार्य प्रगति के विषय में समय समय पर रिपोर्ट तैयार करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • B - Budgeting (बजट बनाना) :- किसी भी संगठन को अपने कार्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता होती हैं।

इस प्रकार प्रशासन के विद्यार्थियों को लूथर गुलिक का आभारी होना चाहिए जिन्होंने 'पोस्डकोर्ब' जैसा संकेताक्षर शब्द रचा जो महत्वपूर्ण कार्यकारी कार्यों को निरूपित करता है।

परंतु इसके बावजूद इस बात की उपेक्षा नहीं की जा सकती की 'पोस्डकोर्ब' जैसा शब्द सूत्र नीति निर्माण, मूल्यांकन और जनसंपर्क जैसी प्रक्रियाओं के बारे में कोई सूचना नहीं देता। संगठन के यह तमाम महत्वपूर्ण पहलू यहां पूरी तरह अनुपस्थित हैं।


विभागीकरण का सिद्धांत /आधार (लूथर गुलिक)

लूथर गुलिक ने ऐसे चार आधारों की तलाश की है जिनकी बदौलत कार्य बांटने यानी उपयुक्त व्यक्ति तथा उपयुक्त समूह को काम सौंपने की समस्या का हल निकाला जा सकता है। यह चार आधार इस प्रकार हैं:-

  •  उद्देश्य (Purpose)
  • प्रक्रिया (Process)
  •  व्यक्ति (Person)
  •  स्थान (Place) 

गूलिक इन्हें "P4" का नाम भी देते है।


आलोचना:-

  • एक दूसरे से मेल नहीं खाते 
  • पूर्णतः स्पष्ट नहीं है 
  • यह सिद्धांत विवेचनात्मक होने के बजाय आदेशात्मक हैं।

इसकी आलोचना भले ही की गई हो परंतु आज भी इन चारों आधारों पर विभिन्न संगठनों में विभागों का बंटवारा होता है। जैसे सरकार में - रक्षा विभाग, वित्त विभाग व कानून विभाग आदि।



लोक प्रशासन में मानवीय कारक और समय


गुलिक ने अपने हाल के लेखों में महसूस किया है कि 50 साल पहले उन्होंने लोक प्रशासन के संबंध में जो 'पेपर्स ऑन साइंस ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन' संपादित किए थे तब के मुकाबले आज के क्षेत्र में बहुत तब्दीलियां आ गई हैं यह तब्दीलियां प्रशासन की प्रकृति में हुए प्रभावशाली बदलावों के चलते आई हैं।


गुलिक ज़ोर देकर कहते हैं कि राज्य का मुख्य कार्य लोगों का कल्याण करना होना चाहिए उनके जीवन को कायम रखना और बेहतर बनाना होना चाहिए ताकि सतत बदलते हुए वातावरण की चुनौतियों का सामना किया जा सके ने की युद्ध का। मगर वह अफसोस के साथ कहते हैं कि आधुनिक राज्य की संरचना मुख्यतः युद्ध को ध्यान में रखकर की गई है। मानव मूल्य और कल्याण कहीं संदर्भ में नहीं है।

गुलिक समय के विषय में कहते हैं कि समय हर घटना के लिए महत्वपूर्ण कारक होता है इसके बिना न तो परिवर्तन हो सकता है और ना ही विकास प्रबंधन के उत्तरदायित्व को तय किए जाने और कार्यक्रम स्थितियों के लिए भी समय प्रभावी कारक होता है। मगर लोक प्रशासन में समय जैसे कारक की उपेक्षा की गई है।


उपसंहार


गुलिक तथा उर्विक ने संगठन सिद्धांतों के विषय में महत्वपूर्ण योगदान दिया है परंतु इनके सिद्धांत आलोचनाओं से परे नहीं है उनके संगठन सिद्धांतों की कड़ी आलोचना की गई है सिद्धांतों के बारे में काफी कुछ लिखने के बाद भी वह पूर्ण रूप से स्पष्ट कर पाने में असफल थे कि इनमें उनका आशय क्या है।


एलडी व्हाइट कहते हैं लाइन, स्टाफ, सहायक एजेंसियां, पदसोपान, सत्ता और केंद्रीयकरण यह तमाम शब्द प्रशासनिक स्थितियों का वर्गीकरण करने और उनका वर्णन करने में तो उपयोगी हो सकते हैं लेकिन जहां तक सवाल प्रशासन का है वैज्ञानिक सूत्रीकरण करने का है तो ये ऐसा यह नहीं करते।


हर्बर्ट साइमन कहते हैं कि प्रशासन के इन सिद्धांतों में सबसे बड़ी खामी यह है कि सबके साथ इनका विलोमर्थी सिद्धांत भी जुड़ा है अर्थात यह सिद्धांत एक दूसरे के विरोधाभासी प्रतीत होते हैंउदाहरण के लिए विशेष उपकरण के सिद्धांत और आदेश की एकता सिद्धांत के बीच असंगति को देखा जा सकता है


गुलिक तथा उर्विक के प्रशासनिक अध्ययन की एक खामी यह भी है कि उन्होंने सिर्फ औपचारिक संगठनों का अध्ययन किया है और अनौपचारिक संगठनों की प्रक्रियाओं की उन्होंने पूर्णता अनदेखी की है जबकि यह एक सामान्य ज्ञान की बात है कि संगठन हमेशा औपचारिक मॉडल के अनुरूप नहीं होते।

इसके अलावा इनके सिद्धांतों में मानवीय पक्ष की उपेक्षा साफ देखी जा सकती है।


इन विभिन्न आलोचनाओं के बावजूद लूथर व गुलिक के प्रशासनिक सिद्धांतों के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमें पोस्डकोर्ब जैसी बेहद महत्वपूर्ण सिद्धांत शामिल है।


Saturday, 23 December 2017

लोक प्रशासन की अवधारणा Public Administration

लोक प्रशासन (Public Administration)


परिचय


लोक प्रशासन को एक अध्ययन विषय के रूप में  देखा जाए तो  इसका इतिहास लगभग 130 वर्ष पुराना है परंतु एक गतिविधि के तौर पर लोक प्रशासन मानव सभ्यता के आरंभिक काल से ही मौजूद रहा है। यह बात अलग है कि प्राचीन काल के लोक प्रशासन की तुलना में आधुनिक लोक प्रशासन की प्रकृति में बदलाव आ गया है। प्राचीन लोक प्रशासन का चरित्र अधिनायकवादी, कुलीन व पितृसत्तात्मक आधारित था तथा इसका मुख्य उद्देश्य  कानून व्यवस्था को लागू करना व राजस्व वसूली करना था। लोक कल्याण के कार्य कभी-कभार ही होते थे। प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति  राजनय वर्ग के द्वारा की जाती थी। अतः जब से मानव ने संगठित होकर रहना प्रारंभ किया है तब से ही लोक प्रशासन का अस्तित्व है तथा मानव सभ्यता के साथ-साथ इसके स्वरुप में भी बदलाव होता रहा है।

वर्तमान में लोक प्रशासन का क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है तथा यह समाज के हर वर्ग को प्रभावित कर रहा है।  अब लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य कल्याणकारी योजनाओं के माध्यम से जनसेवा तथा मानव जीवन स्तर में बढ़ोत्तरी करना है।


लोक प्रशासन, प्रशासन का ही एक भाग है अतः लोक प्रशासन को सही रूप में समझने से पहले प्रशासन को समझना आवश्यक है।

प्रशासन Administration


प्रशासन यानी Administration लेटिन भाषा के Ad तथा Ministarare शब्द के योग से बना है जिसका अर्थ है "काम करवाना"। 16वीं शताब्दी के बाद प्रशासन का अर्थ प्रबंधन से लगाया जाने लगा। परंतु आधुनिक विचारको की माने तो प्रशासन एक सुनिश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए मनुष्य द्वारा आपसी सहयोग से की जाने वाली एक सामूहिक क्रिया है।
प्रशासन का अर्थ शासित या अनुशासित करना है। इसका आशय यह है कि इस क्रिया में अनेक व्यक्तियों को विशिष्ट अनुशासन में रखते हुए उनसे एक निश्चित उद्देश्य की पूर्ति के लिए कार्य कराया जाता है। सरल शब्दों में प्रशासन एक से अधिक व्यक्तियों द्वारा विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए सहयोगी ढंग से किया जाने वाला कार्य है। इस तरह प्रशासन के लिए सहयोगी संगठन और सामाजिक हित का उद्देश्य होना आवश्यक है।

प्रशासन की परिभाषाएं :-

प्रशासन का संबंध निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कार्य करवाने से है
-लूथर गुलिक

व्यापक दृष्टि से प्रशासन की परिभाषा यह कही जा सकती है कि यह समूहों की वह क्रियाएं हैं जो सामूहिक उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आपसी सहयोग द्वारा की जाती हैं
-साइमन स्मिथबर्ग एवं थॉम्पसन

निश्चित उद्देश्य की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला सामूहिक कार्य है
-अरस्तु

निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए मानवीय तथा भौतिक संसाधनों के संगठन और संचालन को प्रशासन कहते हैं
-पिफनर और प्रेस्थस

किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए बहुत से मनुष्य का निर्देशन समन्वय तथा नियंत्रण ही प्रशासन की कला है
-एल. डी. व्हाइट

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रशासन निम्नलिखित लक्षण से युक्त है :-
  • प्रशासन किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जाने वाला कार्य है।
  •  प्रशासन करने वाले के पास अधिकार होता है कि वह दूसरों को कार्य में सहयोग के लिए कहे।
  • प्रशासन में एक से अधिक व्यक्ति सहयोग भाव से कार्य करते हैं।
  • प्रशासन का उद्देश्य इस क्रिया में भाग लेने वाले व्यक्तियों के उद्देश्य से भी होता है। ( उदाहरण के लिए यदि कोई सरकार जन कल्याण की कोई नीति बनाता है तथा उसे लागू करता है तो उसका उद्देश्य जनता की करना होता है परंतु इस में काम करने वाले कर्मचारियों का उद्देश्य अपनी आजीविका कमाना होता है )
अतः विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए विभिन्न व्यक्तियों के सहयोग से किया जाने वाले कार्य के प्रबंधन को प्रशासन कहते हैं है।

लोक प्रशासन Public Administration 

लोक प्रशासन का अर्थ:-

लोक प्रशासन "प्रशासन" का ही एक भाग है अर्थात प्रशासन के विस्तृत क्षेत्र का एक भाग है। लोक प्रशासन "लोक" Public तथा "प्रशासन" Administration से मिलकर बना है।
लोक शब्द सार्वजनिकता व आम जनता की भागीदारी का प्रतीक है तथा प्रशासन से अभिप्राय जनता की सेवा व कार्य प्रबंधन से है। तथा लोक प्रशासन का संबंध सरकारी नीतियों के क्रियान्वयन करने से होता है।
अतः लोक कल्याण की सार्वजनिक गतिविधियों का प्रबंधन अथवा सरकारी कार्यों व नीतियों का प्रबंधन करना लोक प्रशासन कहलाता है।

लूथर गुलिक के अनुसार - लोक प्रशासन प्रशासन का वह अंग है जिसका संबंध सरकार से है और इस प्रकार मुख्य रूप से लोक प्रशासशन का संबंध कार्यपालिका से है।

पर्सीमेक्वीन के अनुसार - लोक प्रशासन सरकार के कार्यों से संबंधित होता है, चाहे वे केन्द्र द्वारा सम्पादित हों अथवा स्थानीय निकाय द्वारा।

व्हाइट के अनुसार - लोक प्रशासन में वह गतिविधियां आती हैं जिनका उद्देश्य सार्वजनिक नीति को पूरा करना या क्रियांवित करना होता है।

वुडरो विल्सन के अनुसार- लोक प्रशासन नियम या कानून को विस्तृत एवं क्रमबद्ध रूप में क्रियांवित करने का काम है कानून को क्रियांवित करने के लिए प्रतिक्रिया प्रशासकीय क्रिया है।

लोक प्रशासन का स्वरुप (Nature of Public Administration) :-


प्रबंधकीय दृष्टिकोण (The Managerial View):-

प्रबंधकीय दृष्टिकोण के अनुसार केवल उच्च स्तरीय प्रशासन के कार्य प्रशासन में शामिल माने जा सकते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करना प्रशासन नहीं बल्कि कार्य करवाना प्रशासन है इस विचार के समर्थक साइमन, थामसन, सिम्थबर्ग तथा गुलिक आदि है।

एकीकृत दृष्टिकोण (The Integral View) :-

एकीकृत दृष्टिकोण के अनुसार कार्य करना तथा कार्य करवाना दोनों ही प्रशासन में आते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार निश्चित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाने वाला क्रियाओं का समग्र योग लोक प्रशासन में आता है इस दृष्टिकोण के अनुसार संगठन में चपरासी से लेकर प्रबंधक तक सभी प्रशासन का भाग है इस सिद्धांत के समर्थक एल डी वाइट, पिफनर और एफ. एम. मार्क्स आदि हैं।


लोक प्रशासन का क्षेत्र (Scope of Public Administration) :-


लोक प्रशासन के क्षेत्र की व्यापकता को देखते हुए इसके  क्षेत्र के विषय में कई दृष्टिकोण पाई जाती हैं:-

# पोस्डकोर्ब ( POSDCORB ) दृष्टिकोण

पोस्डकोर्ब शब्द का निर्माण लूथर गुलिक द्वारा किया गया उन्होंने कार्यपालिका के प्रशासन कार्य को ज्ञात किया और एक नए शब्द का निर्माण किया इस शब्द का प्रत्येक अक्षर प्रबंधन के किसी महत्वपूर्ण कार्य का सूचक है।


  • P - Planning (योजना बनाना) :-  किसी भी कार्य करने से पहले उस कार्य की रूपरेखा का निर्धारण करना जिससे निर्धारित उद्देश्य की प्राप्ति सरलतापूर्वक की जा सके
  • O - Organising (संगठन बनाना) :- प्रशासनिक संगठन का ढांचा इस प्रकार से तैयार करना कि विभिन्न प्रशासकीय कार्यों का विभाजन उचित रुप में किया जा सके तथा विभिन्न विभागों में समन्वय स्थापित किया जा सके
  • S - Staffing (कर्मचारियों की उपलब्धता) :- किसी भी संगठन को अपने निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विभिन्न योग्य कर्मचारियों की आवश्यकता होती है। 
  • D - Directing (निर्देश देना):-  विभिन्न प्रशासकीय कार्यो का विश्लेषण कर उसके अनुसार कर्मचारियों को निर्देश देना ताकि संगठन अपने निर्धारित लक्ष्य की प्राप्ति से भटके नहीं।
  • Co - Co-ordinating (समन्वय स्थापित करना):- संगठन के विभिन्न विभागों के कार्यो में तालमेल स्थापित करना ताकि कुशलतापूर्वक कार्य किया जा सके।
  • R - Reporting (रिपोर्ट तैयार करना):-  संगठन की कार्य प्रगति के विषय में समय समय पर रिपोर्ट तैयार करना तथा उसका विश्लेषण करना।
  • B - Budgeting (बजट बनाना) किसी भी संगठन को अपने कार्य उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए एक निश्चित धनराशि की आवश्यकता होती हैं। 

 अतः वित्तीय संबंधी लेन देन के विषय में बजट तैयार करना आवश्यक होता है।

# संकुचित दृष्टिकोण :- 

इस दृष्टिकोण के समर्थक विद्वानों के अनुसार लोक प्रशासन का संबंध केवल शासन की कार्यपालिका से है। इसमें संगठन के सभी कार्यों को सम्मिलित नहीं किया जाता हैं, केवल कार्यपालिका प्रबंधकीय कार्यों को शामिल किया जाता है। ....

# आधुनिक दृष्टिकोण:-

आधुनिक दृष्टिकोण के विचारको के अनुसार सभी प्रकार के सार्वजनिक प्रशासनिक कार्य चाहे वह स्थानीय स्तर पर हो या राष्ट्रीय स्तर पर हो और चाहे वह सलाहकार हो या कार्यवाहक हो, संगठन तथा कार्य प्रणालीयाँ आदि सभी लोक प्रशासन के अंतर्गत आते है। ....

# लोक कल्याणकारी दृष्टिकोण:-

इस दृष्टिकोण के अनुसार राज्य और प्रशासन एक सामान है। इस दृष्टिकोण के अनुसार वर्तमान समय में राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी है उसी प्रकार लोक प्रशासन भी लोक कल्याणकारी है अतः दोनों का उद्देश्य जनकल्याण है। इस प्रकार इस विचारधारा के अनुसार लोक प्रशासन का क्षेत्र जनता के हित में किए जाने वाले समस्त कार्यों तक फैला हुआ है।

लोक प्रशासन और निजी प्रशासन (Public and Private Administration) :-


लोक प्रशासन और निजी प्रशासन के विषय में दो दृष्टिकोण प्रचलित हैं एक दृष्टिकोण दोनों में अंतर नहीं मानता है जबकि दूसरा दृष्टिकोण दोनों में अंतर करता है।


Similarities between Public and Private Administration

 प्रथम दृष्टिकोण समानता का दृष्टिकोण है इस के समर्थक फ्रेंच विचारक हेनरी फेयोल, मेरी पार्कर और और उर्विक है।  ये विचारक दोनों को एक-सा मानते हैं इस दृष्टिकोण के समर्थक मानते हैं कि:-

* निजी प्रशासन और लोक प्रशासन दोनों में ही जनसंपर्क की आवश्यकता पड़ती है ।

* प्रशासन चाहे शासकीय तौर पर किया जाए चाहे निजी तौर पर संगठन की आवश्यकता दोनों में पढ़ती है।

*बड़ा उद्यम चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी की समुचित प्रशासन के लिए नियोजन संगठन आदेश समन्वय तथा नियंत्रण की आवश्यकता होती है।

*दोनों तरह के प्रशासन में अधिकारियों को समान रुप से उत्तरदायित्व दिए जाते हैं अधिकारियों में समानता और कौशल पर बल दिया जाता है।

* दोनों तरह के प्रशासन में प्रबंधन व संगठन संबंधी अनेक तकनीकें समान होती है। जैसे तथ्य उपलब्ध करवाना रिपोर्ट जारी करना संबंधी अनेक क्रियाएं दोनों प्रशासन में पाई जाती हैं


Differences between Public and Private Administration :-


दूसरा दृष्टिकोण असामानता का दृष्टिकोण है जिसके समर्थकों में साइमन तथा अपलबी जैसे विद्वान शामिल है इस दृष्टिकोण के अनुसार लोक प्रशासन और निजी प्रशासन में अंतर है।
 हर्बर्ट साइमन के अनुसार सामान्य व्यक्तियों की दृष्टि में निजी प्रशासन गैर-राजनीतिक और चुस्ती से काम करने वाले माने जाते हैं जो सार्वजनिक प्रशासन से भिन्न होते हैं।


लोक प्रशासन का मुख्य उद्देश्य जन सेवा तथा लोक कल्याण होता है परंतु निजी प्रशासन का मुख्य उद्देश्य लाभ कमाना होता है।

लोक प्रशासन जनता के प्रति जवाबदेह होता हैं परंतु निजी प्रशासन जनता के प्रति इतना जिम्मेदार या जवाबदेह नहीं होता है।

लोक प्रशासन द्वारा ऐसे कार्य किए जाते हैं जो निजी तौर पर पूरे नहीं किए जा सकते इसीलिए बड़े क्षेत्रों जैसे रेलवे व् डाक आदि लोक प्रशासन के अंतर्गत रखे जाते हैं।

लोक प्रशासन का क्षेत्र काफी व्यापक होता है जबकि निजी प्रशासन संकुचित क्षेत्र तक सीमित रहता है।

लोक प्रशासन का संगठन नौकरशाही आधारित होता है परंतु निजी प्रशासन का संगठन व्यापारिक आधार पर होता है

लोक प्रशासन के अंतर्गत कार्यरत कर्मचारी स्थाई होते हैं जबकि निजी प्रशासन में कार्यरत कर्मचारी अस्थाई होते हैं

लोक प्रशासन में निजी लोक प्रशासन की तुलना में पक्षपात पूर्ण व्यवहार किए जाने की संभावना बहुत कम होती है।


लोक प्रशासन का महत्व (Significance of Public Administration) :-


लोक प्रशासन का महत्व वर्तमान के आधुनिक काल में लोक प्रशासन का महत्व बहुत अधिक बढ़ गया है राज्य का का स्वरूप अधिनायकवादी तथा पितृसत्तात्मक आधारित से बदलकर आज के आधुनिक युग में कल्याणकारी राज्य के रूप में स्थापित हो चुका है अतः राज्य के दायित्व में बढ़ोतरी के साथ-साथ लोक प्रशासन का महत्व भी निरंतर बढ़ता जा रहा है इसलिए वर्तमान युग को प्रशासनिक राज्य का युग भी कहा जाता है

लोक कल्याणकारी
राज्य वर्तमान समय में राज्य का स्वरूप लोक कल्याणकारी हो गया है। लोक कल्याणकारी राज्य का मुख्य उद्देश्य जनकल्याण के कार्य करना होता है। राज्य लोक हित के लक्ष्यों की पूर्ति बिना प्रशासन के सहयोग के नहीं कर सकता आर्थिक जीवन के लक्ष्य प्रशासन की कार्यकुशलता के माध्यम से प्राप्त किए जा सकते हैं। लोक कल्याणकारी राज्य की सफलता पर शासकीय कुशलता पर आधारित होती है।

लोकतंत्रात्मक शासन
वैसे प्रशासन का महत्व तो प्रत्येक प्रणाली में है परंतु लोकतांत्रिक शासन प्रणाली में इस का विशेष महत्व है। लोकतंत्र में प्रशासन सेवक की भूमिका निभाता है। प्रशासन का उद्देश्य सार्वजनिक हित होता है और प्रशासन की भूमिका सृजनात्मक होती है।

नीतियों को व्यवहारिक जामा पहनाने के लिए
 नीतियों को व्यवहारिक बनाने की लिए लोक प्रशासन का विशेष महत्व है। लोक प्रशासन सामाजिक आवश्यकता और आर्थिक बचत की दृष्टि से ऐसे निर्णय लेता है जिससे नीति को व्यवहारिकता प्राप्त होती है।

निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए
 निर्धारित लक्ष्य की पूर्ति के लिए लोकप्रशासन बेहद महत्वपूर्ण है विभिन्न आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लोक प्रशासन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है

सामाजिक स्थिरता व सामाजिक परिवर्तन के लिए
सामाजिक स्थिरता के निर्माण में लोकप्रशासन का बहुत महत्व हैं। वर्तमान समय में प्राथमिक आवश्यकताओं की व्यवस्था करना लोक प्रशासन की कार्यकुशलता पर निर्भर है।सामाजिक जीवन में परिस्थितियों के परिवर्तन आदि के कारण बदलाव का चक्र चलता रहता है।जिससे राजनीतिक व्यवस्था में उथल-पुथल होती रहती है और सरकारी बदलती रहती है परंतु ऐसी स्थिति में प्रशासन का ढांचा समाज को स्थिरता प्रदान करती है।

युद्ध काल में
युद्ध के समय लोक प्रशासन की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है देश की रक्षा के लिए संपूर्ण जन शक्ति और उसके समस्त साधनों का संगठन व नियमन आवश्यक होता है लोक प्रशासन इस दायित्व का निर्वाह करत में लोक प्रशासन बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहती है

इसके अलावा अन्य कई क्षेत्रों में लोक प्रशासन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहती है।

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सारांश :-

आधुनिक सभ्यता के विकास में लोक प्रशासन का अहम योगदान राहा है
लोक प्रशासन, राज्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण उपकरण है फिर चाहे राजतंत्र शासन व्यवस्था हो या लोकतंत्र हो  लोक प्रशासन दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। 21वीं सदी में राज्य के स्वरूप में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है
 आज कल्याणकारी राज्य के दौर में राज्य का मुख्य उद्देश्य जनता की आवश्यकता की पूर्ति करना है जिसमे लोक प्रशासन की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका है।
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Saturday, 1 July 2017

संयुक्त राष्ट्र संघ United Nation Organization

United Nation Organization



Background


  • प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) तथा मित्र राष्ट्रों की जीत
  • 1919 पेरिस शांति सम्मेलन - इस शांति सम्मेलन के दौरान 30 से अधिक राष्ट्र मौजूद थे परंतु Germany व् USSR को नहीं बुलाया गया
  • पेरिस शांति सम्मेलन के परिणाम स्वरुप विश्व शांति के लिए League of International Org. ( League of Nation ) की स्थापना की गई। इसकी प्रथम बैठक 16 जनवरी 1920 को जेनेवा में आयोजित की गई। परंतु जिन उद्देश्यों के साथ इसकी स्थापना की गई थी यह उनको पूरा कर पाने में नाकाम साबित रहा ।
  • 1939 में द्वितीय विश्वयुद्ध की शरुआत हो गई तथा league of Nation विश्व शांति कायम करने में नाकाम रहा , विभिन्न आलोचक इसकी प्रभावहीनता को लेकर इसकी करते है।
  • परिणाम स्वरुप League of Nation का 20 अप्रैल 1946 को अंत हो गया

United Nation Organization

  • League of Nation की विफलता तथा द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण सन1945 में संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) की स्थापना की गई।
संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) से संबंधित कुछ रोचक व महत्वपूर्ण तथ्य

  • संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को की गई।
  • United Nation शब्द का प्रतिपादन अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रेंकलिन रूजवेल्ट के द्वारा किया गया था।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर 26 जून 1945 को San Francisco में हस्ताक्षर किए गए थे।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर पर सर्वप्रथम 50 सदस्य राष्ट्रों + Poland ( कुछ समय बाद ) ने हस्ताक्षर किए थे।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में 19 अध्याय Chapter तथा 111 अनुच्छेद Articels शामिल थे। For more details about UNO Charter Click Here 
  • भारत संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य 30 अक्टूबर 1945 को बना ( भारत शुरुआती 51 सदस्य देशों में शामिल था )।
    • 191st member of UNO - Switzerland (2002)
    • 192nd member of UNO - Montenegro (2006)
    • 193rd member of UNO - South Sudan ( 2011)
  • संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय न्यू यॉर्क शहर के मैनहट्टन द्वीप पर स्थित है
  • संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय 17 एकड़ जमीन पर बना है तथा जिसकी 39 मंजिला इमारत है।

  • संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा 6 भाषाओं को (Arabic, Chinese, English,French, Russian and Spanish) औपचारिक भाषाओं का दर्जा दिया गया है।
  • संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रथम बैठक = Jan 1946 Wese Minister Center Hall London
  • महासभा की प्रथम बैठक = New York , Oct 1952
  • 20 नवंबर 2002 में संयुक्त राष्ट्र संघ में मृत्युदंड की समाप्ति के लिए एक प्रस्ताव लाया गया ( महासभा में ) जिस पर 110 पक्ष में तथा 39 विपक्ष में वोट पड़े तथा 36 ऐसे जिन्होंने वोट नहीं किया तथा भारत इसके विपक्ष में था। यह एक Non Binding Resolution था।

     
1. - महासभा ( General Assembly )

First President of G. A. = Paul Henri Spaak ( Belgium )
Present President of G.A. = Peter Thomson ( Fiji )

  • महा सभा की प्रथम बैठक 10 जनवरी 1946 को Westminster central Hall , London में आयोजित की गई थी जिसमें 51 देशों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे।
  • महासभा में प्रत्येक सदस्य देश 5 प्रतिनिधि भेज सकते हैं, परंतु उनका वोट केवल एक ही होता है।
  • प्रत्येक वर्ष नियमित सत्र की शुरुआत पर महासभा में एक नए अध्यक्ष , 21 उपाध्यक्ष और महासभा के 7 मुख्य समितियों के अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है।
  • सुरक्षा परिषद के पांच स्थाई सदस्य देशों में से महासभा के अध्यक्ष का चुनाव नहीं किया जा सकता है।
  • श्रीमती विजयलक्ष्मी पंडित ( पंडित जवाहरलाल नेहरु की बहन ) 1953 में 8वीं अध्यक्ष चुनी गई थी। वह प्रथम महिला अध्यक्ष तथा प्रथम भारतीय अध्यक्ष थी।
  • Argentina इकलौता ऐसा देश है जहां से महासभा के लिए दो बार अध्यक्ष चुने गए हैं। (1948 & 1988 )
  • महासभा का वर्ष में कम से कम एक बार सत्र ( बैठक ) आयोजित करना आवश्यक होता है।


2. - सुरक्षा परिषद ( Security Council )


  • सुरक्षा परिषद में कुल 15 सदस्य होते हैं जिनमें 5 स्थाई सदस्य होते हैं तथा 10 अस्थाई सदस्यों का चुनाव 2 वर्षों के लिए किया जाता है।
  • 10 अस्थाई सदस्यों का चुनाव एक साथ नहीं होता बल्कि 5 सदस्यों का एक बार तथा 5 सदस्यों का अगले साल के क्रम में होता है।
  • सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य हैं :- America , France , U.K. , Rassia , Chaina
  • भारत सुरक्षा परिषद में 7 बार अस्थाई सदस्य रह चुका है।
  • सुरक्षा परिषद के पांचो स्थाई सदस्यों के पास एक विशेष अधिकार Veto Power होता है। इस अधिकार ( Art 27 ) के द्वारा सुरक्षा परिषद के स्थाई सदस्य किसी भी प्रस्ताव निरस्त कर सकते हैं।
  • Use of Veto Total 269 times ( till 2012 )
USSR / Russia - 127
USA - 83
UK - 32
France - 18
Chaina - 9

  • अमेरिका ने लगभग 45 बार Veto का प्रयोग मध्य पूर्व से संबंधित विषयों तथा इजरायल के विषय में किया है।
  • सुरक्षा परिषद में Veto Power की मांग USSR leader Joseph Stalin द्वारा Yalta conference ( feb1945 ) के दौरान किया गया था।


3. - आर्थिक एवं सामाजिक परिषद ( Economic and Social Council )


  • वर्तमान में आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की सदस्य संख्या 54 है।
  • प्रारंभ में इसकी सदस्य संख्या 18 थी , 1966 ई० में संशोधन के बाद 27 तथा फिर 1973 ई० के संसोधन के बाद इसकी संख्या 54 कर दी गई।
  • इसके सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष का होता है।
  • यह एक स्थाई संस्था है इसके एक तिहाई सदस्य प्रतिवर्ष पदमुक्त होते हैं परंतु अवकाश ग्रहण करने वाला सदस्य पुणे निर्वाचित हो सकता है।
  • आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की बैठक वर्ष में दो बार होती है - अप्रैल में न्यूयॉर्क में तथा जुलाई में जेनेवा में।

4.- प्रन्यास परिषद ( Trusteeship )


  • 1994 ई० में अमेरिका द्वारा प्रशासित प्रशांत द्वीप पलाऊ के स्वतंत्र होने के साथ ही प्रन्यास परिषद ( Trusteeship ) के कार्य लगभग समाप्त हो गए हैं।
  • यह संस्था फिलहाल क्रियाशील नहीं है।
  • जिन देशों को न्यास का भार सौंपा गया था वह देश हैं- Australia, New Zealand, America and Britain।

5.- अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय ( International of Justice - ICJ )

  • अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की स्थापना हेग (नीदरलैंड) में 3 अप्रैल 1946 को की गई थी।
  • इसमें न्यायाधीशों की संख्या 15 रखी गई है इनकी नियुक्ति 9 वर्षों के लिए होती है प्रत्येक 3 वर्ष बाद 5 न्यायाधीशअवकाश ग्रहण करते है ।
  • किसी एक देश से दो न्यायधीश एक साथ इसमें पद ग्रहण नहीं कर सकते हैं।
  • न्यायाधीश अपने में से ही किसी एक को अध्यक्ष के पद पर तथा उपाध्यक्ष को 3 वर्षों के लिए चुनते हैं।
  • न्यायालय का कोरम संख्या 9 है।
  • न्यायाधीश की योग्यता :- उसके अपने देश के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की योग्यता ही होती है।
  • I C J का जज अन्य कोई पद धारण नहीं कर सकता।
  • I C J के जज को पद से हटाने के लिए अन्य 14 जजों के सहमति की आवश्यकता होती है।
  • इस न्यायालय में भारत की ओर से नागेंद्र सिंह अध्यक्ष पद पर रह चुके हैं तथा आर एस पाठक न्यायाधीश के रूप में कार्य कर चुके हैं।
  • I C J में जजों की नियुक्ति का अनुपात इस प्रकार से है:- 3 Judges from Asia, 3 Africa, 2 Latin America, 2 Eastern Europe, 5 Western Europe ।
  • Chaina के अलावा सभी "P5 country" के जज I C J में रह चुके हैं।

6.- सचिवालय ( Secretariat )

  • सचिवालय (UNO) के वर्तमान महासचिव António Guterres हैं।

  • सचिवालय का प्रमुख महासचिव होता है। जिसे महासभा द्वारा सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर 5 वर्ष की अवधि के लिए नियुक्त किया जाता है महासचिव को दोबारा भी नियुक्त किया जा सकता है।
  • घोषणा पत्र के अनुसार महासचिव संगठन का मुख्य प्रशासनिक अधिकारी होता है।
  • कोफी अन्नान ( घाना )के कार्यकाल के दौरान उप महासचिव पद की शुरुआत हुई।

List of Secretaries-General

S. No. Name                                  Country            Date in office

1.   Trygve Lie                                  Narway               1946 to 1952

2.   Dag Hammarskjold                  Sweden               1953 to 1961

3.   U Thant                            Burma / Mayamar       1961 to 1971

4.   Kurt Waldheim                         Austria                1972 to 1981

5.   Javier Perezde Cuellar             Peru                    1982 to 1991

6.   Boutros Boutros Ghali             Egypt                  1992 to 1996

7.   Kafi Annan                                 Ghana                1997 to 2006

8.   Ban Ki Moon                              South Korea      2007 to 2016

9.   Antonio Guterres                      Portugal            2017 to .....


संयुक्त राष्ट्र संघ के विषय में अधिक जानकारी के लिए यह http://www.un.,/en/index.html  देखे।